Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ ३३० आनन्द प्रवचन : भाग ६ करने की दृष्टि न हो, जिसकी वाणी में अनुचित छींटाकशी से परहेज हो, निःस्पृहता हो, दूसरों का मन मोह लेने की क्षमता हो, जिसके हृदय में आत्मीयता, सहृदयता एवं सहानुभूति हो, आश्वासन और उत्साह जगाने वाला सन्देश हो, वही चक्ता श्रोताओं पर अपनी वाणी का चिरस्थायी प्रभाव डाल सकता है। मार्टिन लूथर ने उपदेशक की योग्यता के सम्बन्ध में सुन्दर बातें कही हैं "The defect of a preacher sre soon spied. Let him be endued with ten virtues and hae but one fault and one fault will eclipse and darken all his virtues and gifts, so evil is the world in these times." "उपदेशक के दोष शीघ्र ही प्रगट हो जाते हैं। इसलिए उसे दस गुणों से तो सम्पन्न होना चाहिए मगर दुर्गुण या दोष एक्त भी न होना चाहिए। एक भी दोष चन्द्रग्रहण के समान लग गया तो उसके तमाम गुणों और क्षमताओं को अन्धकारावृत्त कर देगा। इन दिनों संसार ऐसा ही बुरा है।'' अतः उपदेशक को बहुत ही सतर्क होकर अपनी उपदेशधारा बहानी चाहिए। बावा दीनदयाल गिरि ने बादल के बहाने उपदेशक को प्रेरणा दी है.---- बरखै कहा पयोद इत, माने मोद मन मांहि । यह तो ऊसर भूमि है, अंकुर जमिहे नांहि । अंकुर जमिहै नांहि, वरष सत जो जल दैहै। गरजै-तरजै कहा, वृथा तेरो श्रम जैहै। बरनै दीनदयाल, न उवर-कुठौरहि परखे। नाहक गाहक बिना, बलमहक ह्यां तू बरखै। . एक बादल को लक्ष्य करके कवि कहता है-अरे बादल ! तेरे पास विपुल जल सम्पदा है इसलिए मन में प्रमुदित होकर क्यों यां बरस रहा है। यहाँ तो ऊसर भूमि है, जहां एक भी अंकुर पैदा नहीं होगा। चाहे तू कैकड़ों वर्षों तक जल बरसाता रहे। और फिर तू यहाँ व्यर्थ गर्जन-तर्जन भी क्यों कर रहा है ? तेरा यह श्रम भी व्यर्थ जाएगा। अरे बादल ! तू उचित और अनुचित स्थान का भी नहीं देखता, फिर बिना ही गाहक के नाहक तू क्यों यहाँ बरसता है ? बस्तुतः नीतिवाक्यामृत के अनुसार “असमय में कहना ऊसर में बीज डालने के बराबर है।" वक्ता को अपनी बात बहुत ही संक्षेप और थोड़े ही समय में कहने का अभ्यास होना चाहिए। घंटों गला फाड़ने से और अप्रासंगिक बातों को लाकर व्याख्यान या उपदेश को लम्बा करने से न तो श्रोताओं के गल्ले ही कुछ पड़ता है, न श्रोताओं पर कुछ प्रभाव ही। वे भी भाषण सुनने के आदि शि जाते हैं। "बिशप बर्नेट' ने उपदेश की

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415