Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 369
________________ आनन्द प्रवचन : भाग ६ सब अंधे मालूम होते हो और मुझे अंधा सिद्ध करने के लिए तुम प्रकाश की बातें करते हो। इसलिए हम हार-थककर इसे आपके पास लाए हैं। सम्भव है, आप इसे प्रकाश के बारे में समझा सकें।" तथागत बुद्ध ने कहा-''मैं इसे समझाने की गलती नहीं करूंगा। मेरा समझाना प्रलापमात्र ही सिद्ध होगा। तुम लोग इसे गलत जगह ले आए हो। इसे ले जाओ, किसी चिकित्सक के पास, जो इसकी आँख का उपचार कर सके। इसे उपदेश की नहीं, उपचार की जरूरत है। तुम्हारे और रेि समझाने से इसकी समस्या हल नहीं होगी, इसकी समस्या हल होगी आँख ठीक त्रिने से। फिर तो यह स्वतः प्रकाश को देख जान लेगा।" आगुन्तकों को बुद्ध की बात ठीक लगी। वे उसे एक नेत्र चिकित्सक के पास ले गए और भाग्यवश कुछ महीनों में उसकी ऑम्व ठीक हो गई। अब वह स्वयं प्रकाश को देखने लगा था। बुद्ध के पास जाकर उसनि सविनय कहा--"भंते ! मैं गलती पर था। प्रकाश तो था, पर मेरे नेत्रों में प्रकाश कहीं था कि उसे देख सकूँ। अब मैं सब कुछ देख सकता हूँ।" जब तक अनुभूतियुक्त प्रकाश न हो, प्रकाश के दावेदार न बनो निष्कर्ष यह है कि विवेक का प्रकाश1 तो सबके पास होता है, लेकिन कुछ प्रकाश के दावेदार दूसरों के प्रकाश को प्रकाप न बताकर स्वयं जो प्रकाश दे रहे हैं, उसी को प्रकाश मानने की धृष्टता कर रहे हैं। गौतम महर्षि ने यही संकेत किया है कि यदि तुम्हारे पास अनुभब का प्रकाश न हो तो दूसरों को प्रकाश देने या दिखाने का दावा मत करो, न दिखाओ। बुद्ध की तरह उसे अपना अनुभव दे दो ताकि उसके विवेक-नेत्र खुल सके। एक विद्वान था, वेदों और शास्त्रों में पागत । उसने अनेक शास्त्र घोंट रखे थे। जब देखो तब, उसकी जिला पर शास्त्रवचन होते। इस उपलब्धि का उसे बहुत गर्व था। वह सदा एक जलती मशाल अपने हाथ में लेकर चलता| चाहे दिन हो या रात, यह मशाल उसके साथ हरदम रहती थी। जब कोई उससे इसके रहने का कारण पूछता तो वह कहता--."संसार अंधकार से व्याप्त । मैं इस मशाल को लेकर चलता हूँ, ताकि मनुष्यों को कुछ प्रकाश अवश्य मिले। उनके जीवन-पथ पर छाये अंधकार को यह मशाल मिटाकर प्रकाशित करेगी।" एक दिन एक भिक्षु ने उसके यह शब सुने तो मुस्कराकर बोला-"मित्र ! अगर आपके नेत्र इस सर्वव्यापी सूर्य को नहीं खि सकते, वे ज्योति विहीन हैं, तो सारे संसार को अंधकारपूर्ण तो मत कहिए। फिर आपकी यह मशाल सूर्य के प्रकाश को क्या प्रकाश देगी? और जो सूर्य को ही नहीं देख पा रहे हैं, वे तुम्हारी इस छोटी-सी मशाल को कैसे देख सकेंगे?" आज अनेक धर्मगुरुओं, उपदेशकों और अध्यात्मवेत्ताओं की मशालें इस

Loading...

Page Navigation
1 ... 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415