Book Title: Anand Pravachana Part 9
Author(s): Anandrushi
Publisher: Ratna Jain Pustakalaya

View full book text
Previous | Next

Page 374
________________ विलिप्तचित्त कोकहना : विलाप ३६७ चित्त प्रसन्न या स्वच्छ न हो तो भगवान की सेवा-पूजा या स्तुति-भक्ति भी नहीं हो सकती, अस्वच्छ या विक्षिप्तचित्त में भक्ति-स्तोते करते समय नाना विकल्पों की तरंगें उठेगी। इसलिए योगीश्वर आनन्दधन जी ने कहा "चित्त प्रसन्ने रे पूजनफल कहां, पूजा अखण्डित एह" मंत्रशास्त्र का भी यह नियम है कि लिंसी भी मंत्र का जब तक चित्त की एकाग्रता या तन्मयतापूर्वक जाप नहीं किया जाता, तब तक उसमें सफलता या सिद्धि नहीं मिल सकती, न उसी प्रकार के विक्षिप्त चित्त से किये गये मंत्रजाप से अभीष्ट प्रयोजन ही सिद्ध होता। अध्ययन के क्षेत्र में भी यही बात है। यब तक विद्यार्थी का चित्त अध्ययन के लिए अभीष्ट विषय में एकाग्र नहीं होगा, जब तक छात्र दत्तचित्त होकर उस विषय के अध्ययन में संलग्न नहीं होगा, तब तक विद्यार्थी को उसमें सफलता नहीं मिलेगी। अगर विद्यार्थी अपने चित्त को विद्याध्ययन में न लामाक ऐशोआराम, सैरसपाटे, शरीर की साजसा, नाटक-सिनेमा के अवलोकन, आवाप्रगर्दी एवं मनमाने निरंकुश आचरण में लगा देगा, तो निःसन्देह उसका विद्याध्ययन वहीं ठप्प हो जाएगा। कदाचित् वह विद्यालय की अपनी कक्षा मेंपढ़ने वैठेगा, किताव भी सामने खोलकर रखेगा, पाठ भी रटता हुआ-सा दिखाई देगा, परन्तु उसका चिन कहीं अन्यत्र होगा। उसके चित्त में दूसरे ही सपने होंगे। वह अपने घरवालों की आंखों में धूल झोंक सकता है कि हमारा लड़का पढ़ रहा है, वह गुरुकुल में है, या जिद्यालय में पढ़ने जाता है. परन्त उस विद्यार्थी का चित्त किसी दूसरे ही क्षेत्र में विकरण कर रहा होता है, भला बताइए. विक्षिप्त चित्त विद्यार्थी कैसे सफल हो सकता है, वेद्याध्ययन में ? इसीलिए प्राचीनकाल में गुरुकुलों में प्रविश करते समय विद्यार्थी को सर्वप्रथम चित्त की एकाग्रता और तन्मयता का अभ्यास कराया जाता था। किसी-किसी गुरुकुल में तो चित्त की एकाग्रता की परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही छात्र को गुरुकुल में भर्ती किया जाता था। मैंने कहीं पढ़ा था कि एक प्रसिद्ध लामा ने अपनी आत्मकथा में अपने विद्यापीठ प्रवेश का वर्णन लिखा है कि जब में पांच वर्ष का था, मुझे विद्यापीठ में अध्ययन के लिए भेजा गया। रात को मेरे पिता ने मुझसे कहा-" बेटा। कल सुबह ४ बजे तुझे विद्यापीठ के लिए प्रस्थान करना है। स्मरण रहे सुबह घर से तेरी विदाई के समय न तो तेरी मां होगी और न मैं रहूंगा। मां उस समय इसलिए नहीं रहेगी कि उसकी आंखों में आंसू आ जाएंगी, और रोती हुई मां को छोड़कर तूं जाएगा तो तेरा चित्त विद्याध्ययन में न लगकर सदा घर में लगा रहेगा। हमारे कुल में आज तक कोई भी ऐसा लड़का नहीं हुआ, जिसका चित्त विहाध्ययन के समय पीछे की तरफ लगा रहता हो। और मैं इसलिए मौजूद नहीं रहूंगा कि अगर घोड़े पर बैठकर तूने एक दफा

Loading...

Page Navigation
1 ... 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415