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आनन्द प्रवचन : भाग ६
धोता था। उसे यही भ्रमपूर्ण और सन्देहात्मक कल्पना रहती थी कि टट्टी अब भी हाथ मे लगी रह गई है।
एक सजन अपने आपको बडा भक्त वहते और अछूतों से घृणा करते थे। यदि कोई शूद्र घर में आ जाता तो वे फर्श को कई बार धुलवाते थे। बाहर से खरीदे हुए पदार्थ को भी वे धोते थे और किसी से छू जाने पर वे कई बार नहाते थे।
संभिन्नचित्त व टूटे हुए चित्त कुण्ठाग्रता भी होते हैं।
कुण्ठा चित्त में किसी भाव को दबाने से उत्पन्न होती है। बचपन की किसी कटु अनुभूति के कारण ये दमित या दलित (कुण्ठिा ) भाव दुख और व्याधि के कारण बनते हैं और मनुष्य को परेशान किये रहते हैं। ऐसे कृण्ठाग्रस्त चित्त वाला व्यक्ति किसी काम में सफलता, शोभा या सुख शान्ति नहीं पाता । झोधी, चिड़चिड़ी, बात-बात में झगड़ा करने वाली कर्कशा नारी के बिगड़े हुए स्वभाव का कारण संभिन्नचित्त ग्रस्त चित्त ही है, जो प्रायः बचपन में इस पर किये गए नाना प्रकार के दमन के कारण बनता है।
कई नारियाँ या पुरुष छोटे बच्चों से बहुत धृणा करते हैं, उसका कारण यही संभिन्नचित्तग्रस्त चित्त है, उनें मातृत्व या पितृत्व के सहजभाव पनप नहीं पाये हैं, कुण्ठित हो गए हैं।
एक लड़का था, जो छोटे-छोटे जानकरों को पीटने और सताने में आनन्द मानता था। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बाताब में वह लड़का अपने में कुण्ठित (छिपे हुए) पौरुष और शासन करने के भाव को गलत तरीके से व्यक्त कर रहा था। सम्भव है ऐसा लड़का आगे चलकर दुष्ट और हत्या के रूप में पनपे।
एक युवक था। उसका विवाह उम्रकी मनोनीत प्रेमिका से होना तय हो चुका था। इससे वह जोश में आ गया था। परन्तु अकस्मात उसका वह सम्बन्ध टूट गया। तब उसे निराशा का भारी धक्का लगा। वन टूटे हुए चित्त का युवक विद्रोही बन गया। विध्वंसात्मक प्रवृत्ति में पड़कर समाज से प्रतिशोध लेने पर उतारू हो गया। इस प्रकार के कुण्ठाग्रस्त टूटे हुए चित्त वाले व्यक्ति में क्रोध का ज्वालामुखी, घृणा का तूफान या आदेश की सुलगती आग भड़क उठती है, जो उसके चित्त के अनुकूल, प्रिय, सम्बन्धित कार्य में लगने से शान्त हो सकती है।
एक उत्पातकारी विद्यार्थी के विषण में सुना था। वह कालेज में जाते हुए बाग के पेड़ और फल तोड़ता, मालियों को परेशान करता और विद्यार्थियों को पीट देता था। सभी उससे तंग थे। पढ़ने में उसका मन कतई नही लगता था। एक मनोवैज्ञानिक ने उसके कुण्ठाग्रस्त चित्त को सुधारने के लिए सेना में भर्ती करा देने की सलाह दी। फलतः वह भर्ती करा दिया गया। आज वह एक अच्छा फौजी जनरल है। सैनिक जीवन की कठोरताओं में भी वह सफलता पाता रहा ।
कई कुण्ठाग्रस्त लोग अन्दर ही अन्दर घुलते रहते हैं, कोई आन्तरिक दुःख, पीड़ा, व्यथा या वेदना उन्हें व्यथित करतो रहती है। इस प्रकार के आन्तरिक दुख का