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आनन्द प्रवचन : भाग ६
एक बार राजा भोज की पण्डित सभा में चार प्रश्न शोभा के विषय में पूछे गये
(१) मर्द की शोभा किसमें है ? (२) नारी की शोभा किसमें है ? (३) भैंस की शोभा किसमें है ? (४) घोड़ी की शोभा किसमें है ?
कई विद्वानों ने कई तरह के उत्तर दिन। एक पण्डित ने एक दोहे में उत्तर दिया
मर्द सोहे मूंछ बाका, नैन बांकी गोरियाँ।
भैंस सोहे सींग बांकी, सा बाकी घोड़ियाँ। सभा में यह दोहा जोर-जोर से सुनाया का रहा था, तभी सभा के द्वार के बाहर खड़े एक चरवाहे ने जोर से चिल्लाकर कहा--"पण्डित जी का यह कथन गलत है। ये पढ़े तो हैं, गुने नहीं हैं।"
लोगों ने राजा भोज के कहने से उस चरवाहे को सभा में बुलाया और कहा -"क्यों भाई ! तू इन चार प्रश्नो के सही उत्तर देने का दावा करता है, तो तू भी उत्तर दे।" उसने कहा
मई सोहे वीर बांका, श्रीन बांकी गोरियौं ।
___ मैंस सोहे दूध बांकी, चका बांकी घोड़ियाँ। मर्द के चाहे मूंछ कितनी ही लम्बी क्यों न हो, अगर वह राष्ट्र पर आए संकट के समय अथवा बहन-बेटियों की इजत लूटी जा रही हो, उस समय अगर पराक्रम नहीं दिखा सकता तो उसकी क्या शोभा है ? वह तो श्रीहीन है। इसी प्रकार स्त्री के नेत्र कामी पुरुषों को अपने कामजाल में फंसाने हो, या स्वयं फँसने में हों तो उसकी क्याशोभा है ? उसकी शोभा है—शील में। अगर स्त्री शीलवती है, सच्चरित्र है तो वह श्रीमती है, शोभास्पद है, अन्यथा नहीं।
इसी प्रकार भैंस के सींग चाहे जितने गाल एवं सुन्दर क्यों न हों अगर वह उन सींगों से दूसरों को मारती है, या दूध नहीं देती। तो केवल सींगो के कारण उस भैंस को कौन रखने को तैयार होगा ? इसलिए मैंस दी श्री (शोभा) दूध में है, सींग में नहीं। अब रहा प्रश्न घोड़ी का। घोड़ी चाहे जितनी रंग रूप वाली हो परन्तु अगर उसकी चाल (गति) तेज नहीं है, वह चलने में तेज तारि या स्फूर्तिवाली नहीं है, तो उस घोड़ी की क्या शोभा है ? ये हैं इन चार प्रश्नो के धार्थ उत्तर।
राजा और सभी सभासद ये उत्तर सुनवर दंग रह गये। सभी ने उस चरवाहे को धन्यवाद दिया।
हाँ, तो मैं कह रहा था कि श्री का अर्थ शोभा है, जो बहुत व्यापक है। इसमें आध्यात्मिक प्रतिभाएँ, शक्तियाँ, तेजस्विता, जमक आदि सभी का समावेश हो जाता