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अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग माढमैं ३ सिंहव्याघ्रादिकांकानखामैं ४ विसमरादिकांका मूलमैं ५ मूत्रमैं ६ वंदरादिकांकाथुक्रमैं ७ हिडक्याजिनावरस्वान सृगा लमैत्र्यादिलेर त्यांकीलाल विष ९ गरमचस्तषाई होय इसी जोस्त्री त्यांकाभगमैविष १० अरगरमवस्तज्यांषायहोयत्यांकीगुदामैविष ११ सर्पादिकांकाकांहाडमै विष १२ न्यौलामांछलानैचादिलेरत्यां कापित्तमें विष १३ भौरादिकां काकां टामै विष १४ भूषककादांतां मैंथिष १५ सिंहादिकां कारोगमै विष १६ अथस्थावरविषपायां जोरोगकैसोलि० स्थावरविषषायांजुरहोय हिचकी होय दांतत्र्यां व्याहोय गलोषकड्योजाय मूंटेजागच्याचे छादणी होय अरुचि होय स्वासहोय मूर्छाहोय जीमैंयेलक्षण होयतदिजाणिजे स्था वरविषषायो । प्रथवृक्षादिकां की जडकाविषषावाकाल क्षएालि० वृक्षादिकांकीजडकाविषषायांवमनहोय मोहहीय बकबोहोय १ अथवृक्षादिकांकापत्रकाविषषावाकालक्ष एलि॰ जंभाईयणीत्र्याचे शरीरकांपै स्वासहोय २ अथदृक्षादिकां काफलकाविषषाचाकालक्षएलि॰ मुषमैं सोजोहोय शरीर मैंदाहहोय भोजनमात्रमैंद्वेषहोय ३ अथरक्षादिकांकापुष्प काषायासूंघिवाकालक्षरालि• छर्दिहोय आफरोहोय मूर्छाहोय ४ वृक्षादिकांकीबकलकारसकाषा बालगाबाकाल क्षणलि• वेंकाटामै दुर्गधिश्रावै शरीरकर डोहोयजाय मथ बायहोजाय मूंटामै कफघलांनीसरै ५ प्रथदृक्षादिकांकडू पकाविषकाषावाकालक्षणलि० मूंढांमैागच्याचे गुदाकोब धंछूदिजाय जीभभारी होजाय ६ अथधातुविषहरतालादिकां कावा कालक्षणलि० हियोइषै मूर्छाहोय शरीरमैंदाहलागि
जाय
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