Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
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५४१ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २५ शिवमंमिलिथकीरहेछै अथचोवीसतलति महतलानाम अहंकारा पांचतन्यान ५प्रकृति दशइंद्री येकमन पां चमहाभूत ५येरविकार, येसर्वमिलिचोचीस २४ तत्वहोय पाछै यांचोईसतत्वांकोशरीररुपीयोघरवणेनदिई घरमैजीवात्माशुभ अशभकर्माकैाधीनहूबोथकोईशरीररूपायरमैप्रायकरव सैमनरुपाडूतकैवसहूबोथकोपाछै जीवकरिसंयुक्तईशरीरबु हिवानदेहीकहेछै सोयोदेहीपापपुण्यसुधरवादिकांकरिव्याप्त हुवोथको अरयोमनकरिजातात्पादथ्योथको अरपापकस्याजोकर्म बंधनत्यांसंबंधैले अरकामाकोधरलोभमोह ४ अहंकार ५८ शरंदीबुद्धिायेसर्वअज्ञानथकीजीवात्माबंधनकैअर्थछैअरजीवात्मानेात्मज्ञानहोयतोई कीमुक्तिहोय अरजीमंडपउप जैनानन्याधिकहेछे जामसुमापजेतीनेबारोग्यकहजेनिस टिजोउपजापाकोकहबोसंपू. अथाहारकोअरपरिपा ककोपरगर्भकोउत्पत्तिकोपरबालककापोषणादिककाल सालि जोभोजनादिककाजेछैसोहीयाकापागपवनकारकै पोथको प्रथमग्रामासयमैजायप्राप्तिहोयछै पाछेोहाबाहारम सुरपानेमाप्तिहोयडै पाछैोहीयाहारपाचकपित्तकाप्रभावक रिकायेकपकोथको अम्लपणाने प्राप्तहोयडे पाछेप्रोहीअाहारना भिकासमानपवनकारप्रेस्पोथकोछतीग्रहणीकलामेंप्राप्तिहोयछे पाछैग्रहणीकलामेंग्राहारपचिकोष्टकाअधिकरिके ओही आहारक डबोहोजाय पाडेग्रोहीअाहारकोष्टकामिकरिपचिवेंकोच्यो रसपेराहोजायडै अरोपाछेप्रकारपनहीं अरकचौरहैतोही आहारकोनांबहोजायछै परकोटकीअग्निबलवानहोयतौरोत्रा
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