Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
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५८२ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग २॥ आंबकीजड कैथकाजड़यांकोकाटोकरि ईपाएगी बालकनेंना नकरातीशकुनीग्रहकोदोषजाय अथवा मारुषकीजड मह नो पस गोरासर कमलकीजड पदमाषलोद फूलप्रियंए मजीठ गेलं यानेजलसंमिहींपाटि ईकोबालककैउवटगोकरेती मालकले शकुनीयहकोदोषजायर अथवास्कंदापस्मारकाजतनकत्याछेसो मीशकुनीग्रहकादोषहरिकरेछे ३अथवा सतावरी अथवाई द्रायणकाजड अथवा नागदवपिअथवाकट्याली अथवासहदेई यांकोपूजनकारबालकागलाकैबांधेतौ शकनीग्रहकादोषहरि होय ४ अथवा तिल चावल फूलांकीमाला हरताल मेगासिल यां काशकुनीयहने बलिदेविधिपूर्वक ओरबालकोषयांकाज लमुरुनानकरावेतीशकुनीग्रहकोदोषरिहोय ५अथरेवती ग्रहकाजतनलि. असगंधमींदासांगी गौरीसर सारीकाजड सेवताकाफूल विरारीकंद यांकोकाटोकरि ईकाटाकापाणीसूदा लकनैमानकरावेतोबालककैरेवतीयहकोदोषजाय अथवा बालककैतलकोमर्दनकरै अथवाकूरल गूगल षस हलद यांकीबालककैलादेतोरेवतीयहकोदोषपूरिहोय ७ अथवा सुगंधि.लीयां सुपेदफूल चावलांकीपाल इधरांधीसाल दहीयां मैंवालकउपरिनांषिबालकनैस्नानकरावेअरयांहींकीगसालामैवलिदेती बालककैरेयनीयहकोदोषडूरिहोय-अथपूत नाग्रहकाजतनलिनांबकीछालि विष्णुकांना वणिकालालि यांकोकादोकार ईजल बालनेस्नानकरानीपूतनाग्रहकोदोष दूरिहोय९अथवा नवीनविदारीकंद सुपेद दाष हरताल मेरा सिल कूट रालयांकोकाटोकरिईकाटाकारसमैनेल अथवा घृत
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