Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 544
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग २५ येफेकपांचप्रकारकाछै येपांचूजुराजुदास्थानां मेरहवां यांतीन्यांमैं वायबलवान, सोयोगायसरीरमैसर्ववस्तकोविभागकरिसादिहमें नसाहारासर्वत्रपहुंचायदेछै अरपित्तपांगुलोछेसूक्ष्म सीतलसू पोछै हलकोई चंचलछै योगगयमलकापासयमैरहैछैकोटभैरहै डै २ अग्निकास्थानमेंरहेछै हियामेरहेछै ४कंउमेरहेछै५येईकापा चमेमुयस्थानछे अररहेछैसाराहीसरीरमैं गुदामैतौईकोअपानना मीनाभिमैईकोसमाननामरहदामैईकोपारानामछेउमैंई कोउदांननामछे४सर्वशरीरमरहतोनीकोयाननामडै ५ इतिवाय स्वरूप प्रथपित्तकोस्वरुपलि पित्तगरगछे पतलो पालो छै सनोगामईछै करोडै तीषोछै अररबहवोपारोहोमायके. योपांचस्थान में रहेछै अग्यासयमैतिलप्रमाण योअमिरूपहोयर हेछैलगायोकानिकोकरवावालोछै नेत्रांमेयोरहेसकोदोष बावालो प्रशतियोरहैसवस्त पचायदेछै अरषायारसकोलोहोकारदे अरहियामरहतोजोपित्तसोबुधारिकइंकर ५पाचकानाजकरंजकालोचकरसाधक५येपित्तमाना म अथकफकोस्वरुपलिक कफचीकगोछै भायोडे सुपेर पिछिलछे सीतलहे तमोगरामई मागेछयेदग्बहनोपारोहोय छैकफामासयमै मायांमैगमेंहियामें/संध्यांमै ५यांना गांमैमुष्यरहेछै परदेहमैरहनीयकोदेहकोधिरतानेसर्वअंगका कोमलपणानेकरैछै वेदना स्नेहनरसन ३अवलंबन ४येई कानामडै ३ अथरमायुनसांकोसरुपलि मनुष्यदेहविर्षे मांस हाड मेदयांकाबोधवाकेविनायुनामनसांकही अघहा डांकोस्वरूपलि देहरिषेयेबाधारछे देहयांविनांउभारहेन For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590