Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
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५३१ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग २५ गुगलि मानसोचनेंदूरकरे, अरशरीरकामल.इरिकरडे गरमीकारोगनेंदूरिकरे हियाकीतापग्रररुधिरकाकापर्ने इरिकरैछै शरीरकादुरगंधिनेंदूरिकरैछै कांतिपरतेजनेंदेछ पापनेमनकोग्लानिनेंरिकरै अरभूषकीचिकाछै बुद्धिनें धर्मनेसुषनेयने यांसारांनंवधावेशरीरकावार्य-आनंददेछै शरीरकीकृमिने मार्गकाषेदने दुरिकरैछै येस्नानमैंगुराडै अर अतनांरोगवालोपुरुषस्नानकरैनहींसोलिनीदसंशहिक रिस्मानकरैनहींअरनोदमावतीहोयसोमानानकरैनहीं षेद वालो हिचकीकारोगवालोभोजनकरुषांपाछै षीरापुरुषकफ कारवायकारोगवालो वमनकारोगवालो यारोगांवालोरता नकरेनहीं अरस्नानकस्यांपाछेसंध्यावंदन देता गजब्राम्हण आचार्य गुरु बडाअतिथने आदिलेरयाकोपूजनकरे पाछेश किमापिकदान पाडेमध्यान्हकेसमैंबलिवैश्वदेवादिककार कोई अनिथनें आपकीशक्तिमाफिरभोजनकराय आपकुटुं बसहितभोजनकरै प्रथममधुरअरचीकगोंधापनहितकारि चावल मूंगगोहूंकीरोयनसंयुक्तपायचोषीतरकारीकैसा थि अरसनेंसनेभोजनकरैउनावलिकरेनहीं परभोजनके अंतमिश्रीकासंजोगकोइथंपीचे भोजनकै अंतदहींपायनहीं । अरभोजननिपटथोडोअरनिपटपणोंषायनहीं आपकीचिमाफिकषाय भोजनकरतांग्रतनानेंकनेंराषेमातापिता मि प्रवैयपाककोकर्ता मोर कचोर कूकरोसान वानरयांकादृष्टि प्राडाडै घरभोजनकायापीछे अगस्त्याकंभकर्णरशनेश्वर ३वडवानब१मामसेन५यांगांचाकोस्मरणकरैतीभोजन
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