Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
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५२१ अमृतसागर तथा प्रतापसागरतरंग २४ स्तिकहिजेअथसमनवस्ति पूलप्रियंगमहलोगनागरमोथोर सोत यांने इधर्मेवारि यांकापिचरकादीजैनीनेसमनयस्तिकाहिजे अथहरावस्तिलि पुष्शकाओषयांकोकाटोकरितामीरा व्यमिलाय अरतमांसरसउगैरेत्यांकीपिचरकीदेतीनेटेहराव स्तिकहिजेअथपिछलपस्तिलिम्बोरकापांन सतावरीहेसवा मोचारस यां.दूधमैपकायनामैसहतनांषि वस्तिदीजैतीने पिछ लवस्तिकहिजै अथनिरूहवस्तिकानोलकोप्रमाणलिप्रथम तोकिंचित्साधोलूगनांषे पाठेमहासेराधासहननांषै अर सेराधापृतनापे पाछेयानिनांनैषूबमथि यांकीपिचरकापा सातवारयेकेकदिनकानिरसूचतुराई दीजैइहनिरूहस्ति कातोलकाप्रमाालियो इनिनिरुहमाचाविधिः प्रथमश्ते लकीपस्तिविधिलि अरंडकाजउकोकाटोकरैनीमैंसहत पर मागलटकाभरनांषै अरसौंफपईसाभरसायोलगअधेलाभ रयांवांटिपायांनमछे अरयांकाफ्रिकादेती मेदनेंगोलानेछ मिनें पायाने मलकारोग. उदावर्त्तनै यारोगांनें यातिरिक रेडेअरशरीरनैबलवथा इनिमयतेलकावस्ति अथस्था पनयस्तिलि सहतवृनधनेलयेपईसापईसाभरले सांगा संपकावकलकोरस परसांधोलगप्रथलाभरनांपैयांसारांको येकजावकार पिचरकादेतीनस्थापनवासिंकहिजै अथसिरवन स्तिलिपीपलि पीपलामूल चयचित्रकरियांकोकाटोकरि नामैंनेलसहनसीधोलरामहलीगयांनीटाययेभिमिलाययांका पिचरकादेतीनसिलस्तिकाहर्जे अथफलपतिलि गुदाकेमां हिबारेघृतलगायापकाअंगूगप्रमाराजाडीटूटसांगुलबारार
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