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४९५ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग दिलेरती काकरि वासूंचीर्य कोनाश होयती सूंनपुंसक होय अथ वापुत्रस्त्रीधननैत्र्यादिलेर तींकानांससूंनपुंसक होय अथवारोगां कामबासूंनपुंसकहोय अथवान्प्रतिमैथुनका कश्विासूंबीर्यको नाश होयतीसूंनपुंसकहोय अथवाहाथकी कहींतरै चोटलागि बासूंलिंगकीनसमारीजायतीसूंनपुंसकहोय यात्रम्हचर्य रह वासूंनपुंसकहोय ईत्र्यादिलेरमौरभी कारण है. यांकारणासूंक हॉनरेलिंगकीनसटूटैसोच्यसाध्यजाणिजे प्रथनपुंसकपणां काइरिहोवाकाजतेनलि• मधुर वस्तनैत्र्यादिलेरनानाप्रकार कामनौहर प्रतिस्वाद इसाजो भोजन त्यांकरिनपुंसकपणोंजाय २ अथवा महासुंदरजोस्त्रीती की वाणीकानां सुंदर लागेतीकरि नपुंसकपणोंजाय ३ अथवा तांबूलसुंदरआसवकोपीबो उपवन पुष्टाईकीओषदिदूथ मिश्रीकासंजोगकी मृगांक चंद्रोदयनैं श्रादिलेरसानूधान दधि सिषरणि उडद ये सर्ववस्तनपुंसकपणानेंद्र रिकरैछै अथवा मरसनैचादिलेर भोजन भीमसेनी कपूर क स्तूरीका संजोग की पांनकीबीडी ईच्या दिलेर औरभीवस्तु तींसूं नपुंसकपणोंजाय ४ अथगोक्षुरादिचूर्णलि• गोषरू ताल मषारणा असगंध सतावरी सुपेदमूसली कौंचिकाबीज महलौ डी परैटी काबीज गंगेरशिकीडालि येसर्वबराबरिले योनमिहीनां टिईमैमिश्रीअनुमानमाफिक मिलाय घोटायाडूध कैसाथिटंक ५ रातिनैं रोजीनाले मरपथ्यर हैतौ नपुंसकपरगेंजाय ५ श्रथसुपा रीपाकलि० दषणी सुपारीसेर ॥ तीनदिन जलमैभिजोवै पा छैवेनेंमिहीकतरिसुकायकै पाछैवेंको चूर्ण करे पर वस्त्रसूंछाणि ले पाछैवें बराबरिघृतसूंमकरोय र ठगुणाधमैं वेंकोषैरौ
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