Book Title: Amrutsagar Vaidyak Granth
Author(s): Sawai Pratapsinh Maharaj
Publisher: Gyansagar Press
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५१८ अमृतसागर तथा प्रतापसागर तरंग २४ कारकै सोवापिचरकीइंद्रामैगुदामैदेवेअरवापिचरकाजसतकोना लिगलायवकराकाांडांकावणे अथवासवर्ण आदिलेरधानांकीनालिवो गउकापूंछकैयाकारसोई मैंग्रीषयांकोजलयालिरं अमेभरगुदामैयापस्निकर्मकास्नीयकासर्वरोगजायसोयाय सिरप्रकारकाछै अनुवासाजीकोनांमानिसहजीकोनामरअर तेलतादिलेरजांकीपिचरकारीतीनेअनुवासनवस्तिकहि बैर भनिरहनस्तिकोमेदयेकउत्तरपतिछैपरयनुवास नकोभेदमाचावस्तियांकोनोउटकारभरजलकोठे इतना रोगवालानेअनुवासनवस्तिदाजेनहीं भस्मकरोगवालानै भयजुक्त नेसासषासवालानेशयारोगवालानें यारोगांवाला अनुवासन बस्तिदीजैनहीं बरयांरोगवालानैं अनुवासनवस्तिकराजेअरये कवरसनैलेरउबरसनाईकानेनौछपगुलकीपिचरकाकीवस्ति दी अरवारावरषका पारागुलकापिचरकादाजे बारावर षउपरांतिबाराांगुलकीपिचरकादीजै पारिकाअनुमानसं दीजै अरपिचरकाकैघनलागायतीजेपरवस्तिकर्मसंशरीरमैंबल वधैरोगजाय अरसीनकालमै अरयसंनरिनुमैं दिनमैस्नेहवस्ति दीजै अरग्रीषमरितुमैवर्षाभिनुमैंबरशरदरितु, राधि.अनुवास नयस्तिकर्मकाजै अरघरगोचीकरणोंभोजनकराजेनहीं दलकोभोज नकराजै अरस्नेहमेंसौंफकोजलसांधोलूरानाषिगुदामैवस्तिदीने गरमपाणीपाय भोजनकराय अरफिरायअरमलमूत्रादिकराय अरबांवांपसवाडांकांनीसुवाय अरबांवांजांघनैपसारिभरडूसरी जांधांजीकरिगुदामैस्नेहकापिचरकादेअरबांवांहाथ पकडि जीमाहापभाचैतदिगुदामैपिचरकाकोजलअरहजायपडै
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590