Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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झांसी जिलाकी ललितपुर तहसील में स्थित देवगढ़में गुप्तकालमें तथा पूर्वमध्यकाल ( लगभग ६५० से १२०० ई० ) में कलाका प्रचुर उन्मेष हुआ । गुप्तकालमें वहां विष्णु के प्रसिद्ध दशावतार - मंदिरका निर्माण हुआ । अगले कालमें यहां बेतवा नदीके ठीक तट पर अत्यंत मनोरम स्थल पर जैन मंदिरोंका निर्माण हुआ । यह निर्माण कार्य सातवीं से बारहवीं शती तक होता रहा । इस कार्य में शासकीय प्रोत्साहनके अतिरिक्त व्यव - सायी वर्ग तथा जनसाधारणका सहयोग प्राप्त हुआ । फलस्वरूप यहां बहुसंख्यक कलाकृतियां निर्मित हुई । देवगढ़ में जैन धर्मके भट्टारक संप्रदायके आचार्योंने समीपवर्ती क्षेत्रमें जैन धर्मके प्रसार में बड़ा कार्य किया ।
चंदेरी, थूबोन, दुधई, चांदपुर आदि अनेक स्थलोंसे जैन धर्म संबंधी बहुसंख्यक स्मारक तथा मूर्तियां मिली हैं । ये इस बातकी द्योतक हैं कि पूर्व मध्यकालमें जैन धर्मका अत्यधिक विकास हुआ। पूर्व में खजुराहो ( जि० छतरपुर ) इस क्षेत्रका एक केंद्र बना, जहां मंदिरोंके अतिरिक्त अनेक कलात्मक मूर्तियां दर्शनीय हैं । पूर्व तथा उत्तर मध्यकाल ( १२०० से १८०० ई० ) में मध्यप्रदेश के अनेक क्षेत्रों में कलाका प्रचुर विकास हुआ । अहार, बीना-वारहा, अजयगढ़, बानपुरा, मोहेन्द्रा, तेरही, दमोह, गंधरावल, ग्वालियर ग्यारसपुर भानपुरा, बड़ोह-पठारी आदि कितने ही स्थलोंसे जैन कालकी प्रभूत सामग्री उपलब्ध हुई है । इसे देखने पर पता चला कि वास्तुकला तथा मूर्तिकला अनेक रूपों में यहां विकसित होती रही । अधिकांश मंदिरोंका निर्माण नागर-शैली पर हुआ । मूर्तियोंमें प्रतिमा-लक्षणोंकी ओर विशेष ध्यान दिया गया ।
पूर्व युगों के अनुरूप बहुसंख्यक मध्यकालीन जैन कलाकृतियां अभिलिखित मिली । उन पर अंकित लेखोसे न केवल धार्मिक इतिहासके संबंध में जानकारी प्राप्त हुई है अपितु राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा भाषात्मक विषयों पर रोचक प्रकाश पड़ा है । मध्यप्रदेश के विभिन्न सार्वजनिक संग्रहालयों तथा निजी संग्रहों के अतिरिक्त कलाकी विशाल सामग्री आज भी विभिन्न प्राचीन स्थलों पर बिखरी पड़ी है, जिसकी समुचित सुरक्षाकी ओर अब तुरंत ध्यान देना आवश्यक है ।
२४ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ
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