Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 277
________________ (४१) गिरधर आसिया-ये आसिया शाखाके चारण थे। इनका रचना काल वि० सं० १७२०के लगभग है। लगभग पांच सौ छन्दोंका एक उत्कृष्ट डिंगल भाषाका ग्रन्थ 'सगतसिंघ रासो' इनका बनाया हुआ मिला है। जिसकी प्रति इनके वंशज मेंगटिया निवासी ईश्वरदान आसियाके पास दोहा, भुजंगी, आदिसे युक्त इस ऐतिहासिक काव्यमें महाराणा प्रतापके कनिष्ठ भाई शक्तिसिंहका चरित्र वर्णन है। इनकी मुलाकात मुहणोत नैणसीसे भी हुई थी। (४२) जती मानसिंह-कविराजा बांकीदासके अनुसार ये मानजो जती (यति) थे। इनका सम्बन्ध श्वेताम्बर विजयगच्छसे था। इन्होंने महाराणा राजसिंहके जीवन चरित्रसे सम्बन्धित 'राजविलास' नामक प्रसिद्ध ऐतिहासिक काव्य बनाया। इसकी भाषा डिंगलसे पूरी तरह प्रभावित है।४ कुल अठ्ठारह विलासोंमें समाप्त इस ग्रन्थमें महाराणा राजसिंहके जीवनसे सम्बन्धित अधिकांश घटनाओंका इसमें सजीव वर्णन है । इसका रचना काल वि० सं० १७३४-३७ है ।५ जती मानसिंहकी उदयपुरमें रचित 'संयोग बत्तीसी' नामक रचना भी मिली है। इसे मान मंजरी संयोग द्वात्रिंशिका, संयोग बत्तीसी मान बत्तीसी भी कहते हैं। बिहारी सतसईकी भी इन्होंने टीका की थी। (४३) साईदान-ये झाड़ोली गाँवके निवासी सीलगा खाँपके चारण महाजालके पुत्र थे। इनका रचना काल महाराणा राजसिंहका शासन काल है । लगभग २७७ पद्योंकी एक अपूर्ण रचना 'संमतसार' इनके नामसे प्राप्त हुई है। यह वृष्टि विज्ञापनका ग्रन्थ है, जिसमें दोहा, छप्पय, पद्धति आदि छन्दोंका प्रयोग हुआ है । ग्रन्थ शिव-पार्वती संवादके रूपमें है।' (४४) पीरा आसिया-महाराणा राजसिंहके समकालीन ये आसिया शाखाके चारण थे। इनका रचना काल वि० सं० १७१५के आसपास माना जाता है। इनकी फुटकर गीतोंके अलावा कोई बड़ी रचना अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। फुटकर गीतोंमें 'खटके खित वेध सदा खेहड़तो' नामक प्रथम पंक्ति वाला गीत जिसमें अकबरकी दृष्टि में प्रताप व अन्य हिन्दू नरेश कैसे हैं का वर्णन किया गया है। (४५) माना आसिया–महाराणा जयसिंह (वि० सं० १७३७-१७५५)के समकालीन मानाजी आसिया मदारवालोंके पूर्वज थे। इनके फुटकर गीत प्रसिद्ध है। औरंगजेबने हिन्दुओंको मुसलमान बनानेके उद्देश्यसे जब आक्रमण किया था, उस समय खुमाण वंशी जयसिंहने हिन्दूधर्मकी रक्षा की थी। इस सम्बन्धका इनका गीत बड़ा प्रसिद्ध है। १. डॉ० मोतीलाल मेनारिया, राजस्थानी भाषा और साहित्य, प० २१३ । २. रामनारायण दूगड़ द्वारा सम्पादित मुहणोत नैणसीकी ख्यात, प्रथम भाग प.० ५४ । ३. नरोत्तम दास स्वामी द्वारा सम्पादित बांकीदासकी ख्यात, पृ० ९७ ४. डॉ० गोवर्धन शर्मा--प्राकृत और अपभ्रंशका डिंगल साहित्यपर प्रभाव, पृ० १९१-९२ । ५. मोतीलाल मेनारिया व विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा सम्पादित, राज विलास, भूमिका भाग, पृ०६ । ६. शान्तिलाल भारद्वाज-मेवाड़में रचित जैन साहित्य, मुनि हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, ग्रन्थ पृ० ८९७ । ७. वही, पृ० ८९७ । ८. डॉ. मोतीलाल मेनारिया--राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० २०९। ९. डॉ० देवीलाल पालीवाल द्वारा सम्पादित डिंगल काव्यमें महाराणा प्रताप, पृ० ११४ । १०.प्राचीन राजस्थानी गीत, भाग ३ (साहित्य संस्थान प्रकाशन) पु० ६९-७० । २४० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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