Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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परबत, सू पहाड़ कोरि नै माहे घर कियौ । सू घर रे मुंहड़े दीयै। सू उवा चिटां कूगरौ खेसवै, बीज कंही खुलै नहीं। पहाड़ नै अरोड़ साठ कोस रौ आंतरौ । एक दिन पहाड़ रहै, एक दिन अरोड़ रहै । हम थको रहै।'
(२) ताहरां सूरिजमल सादड़ी छाडी। सूरिजमल देवलीय गयो। आगे देवलीय मैंणों मरि गयो। मैंणी राज करै। उठे जाइ नै सूरिजमल पग टेकिया। सु मैंणी इसड़ी बलाइ, वागो पहिर घोड़े चढ़े । सु छ ताकड़ी री बुडी, इसड़ी बरछी पकड़ीय। देश माहे चौथल्यै । अठ सरिजमल प्रिथीराज रो धक मैंणी कन्हें जाइ रह्यो ।
इन दोनों उद्धरणों में क्रमशः, गरा बलोच और एक यीणी राणीकी शारीरिक शक्ति प्रकट की गई है, जो सामान्य जनसे कहीं अधिक है। राजस्थानमें जिस प्रकार अगणित व्यक्ति शौर्य सम्पन्न हुए हैं, उसी प्रकार यहाँ शारीरिक शक्ति भी कम नहीं रही है। ऐसे व्यक्तियोंकी आज भी लोग चर्चा करते हैं। बातोंके रूपमें उनकी स्मृतिको लेकर बनाए रखा गया है। यथार्थ
पात्रोंके यथार्थ चरित्र चित्रणको दृष्टिसे भी राजस्थानी बातें अपना विशेष महत्त्व रखती हैं। उनमें मानव-मनकी विविध स्थितियोंका सच्चा चित्र प्रस्तुत किया गया है। ऐसे चित्र बहुत अधिक हैं। कुछ उदाहरण देखिए
(१) केसे उपाधीयैकी बातमें जांगल के स्वामी अजैसी दहियाका कुलपुरोहित केसा है। राज्यमें उसका बड़ा सम्मान है। परन्तु वह राजाकी अनुमति प्राप्त किए बिना ही कोटके सामने तालाब बनवाना आरम्भ कर देता है । कोटके लिए यह तालाब हानिकारक हो सकता है, अतः राज अजैसी उसे रोक देता है। इसपर केसा मन ही मन बड़ा नाराज होता है और वह रायसी सांखलासे गुप्त रूपसे मिलकर षडयन्त्र रचता है। तय होता है कि केसा रायसीको जांगल का राज्य दिलवा देगा और बदलेमें उसे कोटके सामने तालाब बनवा लेने दिया जायगा। फिर कपटपूर्वक दहिया-दलके लोगोंको वर रूपमें विवाहके लिए बुलवा लिया जाता है और क्रूरताके साथ उनको आगमें जला दिया जाता है। केसा पुरोहित चालाकीसे जांगल कोटका दरवाजा भी खुलवा लेता है और उसपर सांखला रायसीका अधिकार हो जाता है। कोटके सामने तालाब बनता है। इस प्रकार केसाकी प्रतिहिंसा पूरी होती है। वह तुच्छ स्वार्थके लिए परम्परागत सम्बन्धोंको भुला देता है ।
(२) कछवाहैकी बातमें नरवरगढ़के पतनके समय बालक सोढको लेकर उसकी माता दासीके रूपमें जान बचा कर भाग जाती है और वह खोहमें मीणोंके राज्यमें पहुँचती है। ऐसी दुरवस्थामें वहाँ एक किसान-मीणा उन मां-बेटोंको दयावश अपने घरमें शरण देता है। सोढकी चर्चा खोहके राजाके पास पहुँचती है और वह उसे अपनी सेवामें बुलवा लेता है। कुछ समय बाद खोहपर शाही सेनाकी चढ़ाई होती है और मीणोंका राजा ६ लाख रुपए नकद तथा ३ लाखके बदले सोढको अपने पुत्र-रूपमें बादशाहके पास भेजकर सन्धि कर लेता है। राजा सोढको कहता है कि वह धीरज धारण किए रहे, उसे जल्दी ही छुड़वा लिया
१. राजस्थानो वातां, भाग १, पृ० ४२ । २. वात सूरिजमल री (हस्तप्रति, अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर)। ३. केसै उपाधीय री बात (हस्तप्रति, अ० ज० ग्रन्थालय, बीकानेर)। २५० : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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