Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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हो गयी लेकिन ऐसे मामले राजस्थान में कम हैं । देवलियोंको बनाने के लिए "खणावित" और जीर्णोद्धारके "उधारित " शब्दों का प्रायः प्रयोग किया गया है । कई बार देवलियोंके स्थानपर छत्री और मंडप भी बनाये जाते हैं । चाड़वास के वि० सं० १६५० के २ लेखोंमें गोपालदास बीदावतने वि० सं० १६२५ में मरे श्वेतसिंह पुत्र रामसी और वि० सं० १६४५ में मरे कुम्भकर्णकी स्मृतिमें छत्रियों और मण्डपोंका निर्माण कराया था। कई बार सतियाँ अपने पति की मृत्युकी सूचना प्राप्त होनेपर होती थीं ऐसी घटनायें वहाँ होती थीं जब पतिकी मृत्यु विदेशमें हो जाती थी तब उसकी सूचना प्राप्त होनेपर उसकी स्त्री जहाँ कहीं हो सती हो जाती थी । इस सम्बन्ध में कई लेख उपलब्ध हैं । खमनोर के पास मचीन्दमें वि० सं० १६८३ (१६२६ ई०) के लेखमें भीम सीसोदिया की मृत्यु बनारस में हो जानेपर उसकी राणीके वहाँ सती होने और उन दोनोंकी स्मृतिमें वहाँ छत्री बनानेका उल्लेख है। भीम सिसोदिया, स्मरण रहे कि महाराणा अमरसिंहका पुत्र था जो खुर्रमकी सेना में सेनापति था । खुर्रमने अपने पिता जहाँगीरके विरुद्ध विद्रोह किया था तब मुगल सेना के साथ लड़ता हुआ भीम काम आया था। यह घटना सं० १६८१ में हुई थी । इस प्रकार इस घटना २ वर्ष बाद सती होना ज्ञात होता है। बीकानेर और जोधपुर क्षेत्रसे भी ऐसे कई लेख मिले हैं जिनमें दक्षिण में युद्धमें मारे जानेपर सती होनेका उल्लेख किया गया है ।
उस समय आवश्यक नहीं था कि सबकी रानियाँ सती होवें कई बार रानियाँ जिनके पुत्र या तो ज्येष्ठ राजकुमार थे या गर्भवती होती थीं तो सती नहीं होती थीं। पुरुषोंके भी प्रेमिका के साथ मरने का उल्लेख मिलता है । ऐसी घटनायें अत्यन्त कम हैं । आबू क्षेत्रसे प्राप्त और वहाँके संग्रहालय में रखे नगरनायका प्रेमीके एक लेखमें ऐसी घटनाका उल्लेख है यह लेख सं० १५६५ का है। इसी प्रकारसे ताराचन्द कावड़िया जब गौड़वाड़का मेवाड़की ओरसे शासक था तब उसकी मृत्यु सादड़ी में हो गयी थी । उसका दाह उसके द्वारा बनायी गयी प्रसिद्ध बावड़ी के पास ही हुआ था । उसके साथ उसकी पत्नियोंके साथ कई गायक भी मरे थे। दुर्भाग्यसे अब बावड़ीका जीर्णोद्धार हो जाने से मूल लेख नष्ट हो गये हैं। इन पंक्तियोंके लेखकने ये लेख वहाँ देखे थे और उक्त बावड़ीका शिलालेख भी सम्पादित करके मरुभारती में प्रकाशित कराया था। इस प्रकार इन सतियोंके लेखोंसे तत्कालीन समाजके उचिका विस्तृत ज्ञान हो जाता है। बहुविवाह प्रथा राजपूतोंके साथ वैश्य वर्ग में भी थी। ओसवालोंके कई लेखोंसे सतियोंका बड़ा सम्मान किया जाता रहा है। देवलियों की पूजा और मानसा दी जाति में सती होगी वे उसे बराबर पूजा करते रहते हैं ।
इसको पुष्टि होती है । जाती रही है। जिस
युद्धमें मरनेपर वीरोंकी स्मृतिमें भी लेख खुदानेकी परिपाटी रही है। इन लेखोंको "झुंझार" लेख कहते हैं । इनमें सबसे प्राचीन ३री शताब्दी ई० पू० का खण्डेलाका लेख है । लेखमें मूला द्वारा किसी व्यक्तिकी मृत्युका उल्लेख है जिसकी स्मृतिमें महीस द्वारा उसको खुदानेका उल्लेख किया गया है। लेख खंडित है । लेकिन इससे ३री शताब्दी ई० पू० ३ से इस परम्परा के विद्यमान होने का पता चलता है । चलु
प्राप्त वि० सं० १२४१ के लेखोंमें मोहिल अरड़ कमलके नागपुर के युद्ध में १२४३ के रैवासाके शिलालेख में चन्देल नानण, जो सिंहराजका पुत्र था की
मरनेका उल्लेख है वि० सं० मृत्युका उल्लेख है । लेखमें
१. मरुश्री भाग १ अंक १ में प्रकाशित मेरा लेख "बीदावतोंके अप्रकाशित लेख" । २. राजपूताना म्युजियम रिपोर्ट वर्ष १९३२ लेख सं० ८० ।
३. उक्त वर्ष १९३५ लेख सं० १ ।
४. अरली चौहान डाइनेस्टिज पृ० ९३-९४ |
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इतिहास ओर पुरातत्त्व १२५
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