Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 235
________________ अमरु - शतककी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि डॉ० अजयमित्र शास्त्री १. इस विषय में दो मत नहीं हो सकते कि अमरुक' कविका अमरुकशतक संस्कृतके शृङ्गारपरक गीतिकाव्यों में बेजोड़ है । कालिदासोत्तर कालके गीतिकाव्योंके रचयिताओं में अमरुकके श्लोक संस्कृत काव्यशास्त्रीय ग्रन्थोंमें सबसे अधिक उद्धृत मिलते हैं । एक श्लोकके दायरेमें प्रेमके विविध भावों और परिस्थितियोंके आकर्षक चित्र प्रस्तुत करने वाले श्लोकोंके सङ्ग्रह के रूप में संस्कृत साहित्य में अमरुक शतकका उतना ही उच्च स्थान है जितना प्राकृत साहित्य में हाल सातवाहनकी गाथासप्तशतीका | काव्यरसिकोंके बीच अमरुकको कितना अधिक आदर प्राप्त था यह स्पष्ट करनेके लिए आनन्दवर्धनका मत उद्धृत करना पर्याप्त होगा । ध्वन्यालोकमें आनन्दवर्धनने अमरुकका उल्लेख ऐसे कवियोंके उदाहरण के रूपमें किया है जिनके मुक्तक उतने ही रसपूर्ण होते हैं जितने कि प्रबन्धकाव्य । उन्होंने लिखा है कि अमरुक कविके शृङ्गाररसको प्रवाहित करने वाले मुक्तक वस्तुत: अपने आपमें प्रबन्ध हैं । भरत टीकाकारने कहा है कि अमरुकका एक एक श्लोक सौ प्रबन्धोंके बराबर है | २. दुर्दैववश अनेक प्राचीन साहित्यकारोंकी भाँति अमरुकके जीवन और कालके विषयमें भी हमारी जानकारी नहीं के बराबर है, और निश्चित जानकारीके अभाव में कविके जीवनके सम्बन्धमें अनेक किंवदन्तियां प्रचलित हो गयी हैं । उदाहरणार्थ शङ्करदिग्विजय में माधवने एक किंवदन्तीका उल्लेख किया है जिसके अनुसार मण्डनमिश्रकी पत्नी भारतीके प्रेमविषयक प्रश्नोंका उत्तर देनेके लिए आवश्यक कामशास्त्र विषयक जानकरी प्राप्त करने के उद्देश्यसे शङ्कराचार्य राजा अमरुके मृतशरीरमें प्रविष्ट हुए, उन्होंने अन्तःपुरकी युवतियोंसे रति की और वात्स्यायन कामसूत्र तथा उसकी टीकाका अनुशीलन कर कामशास्त्रपर एक अनुपम ग्रन्थकी रचना की । इस किंवदन्ती के आधारपर परवर्तीकालमें यह विश्वास प्रचलित हुआ कि काश्मीरके राजा अमरुकके रूपमें प्रच्छन्न शङ्कराचार्य ही अमरुशतकके रचयिता थे । इस किंवदन्तीका उल्लेख अमरुशतक के टीकाकार रविचन्दने किया है । यह किंवदन्ती अन्य महापुरुषोंके सम्बन्ध में प्रचलित असङ्ख्य अनर्गल एवम् निराधार विश्वासों की श्रेणीकी है । ऐतिहासिक दृष्टिसे इसका कुछ भी महत्त्व नहीं है । ३. अमरुक भारतके किस प्राप्त में हुआ, यह भी ज्ञात नहीं है । श्री चिन्तामणि रामचन्द्र देवधरने अत्यन्त आधारहीन तर्कोंके बलपर यह सम्भावना व्यक्त की है कि अमरुक दाक्षिणात्य था । उन्होंने यहाँ तक १. अमरु, अमरुक, अमर, अमरक, और अम्रक ये कविके नामके अन्य रूप हैं । द्रष्टव्य - चि० रा० देवधर (सम्पादक), वेमभूपालकी शृङ्गारदीपिका सहित अमरुशतक (पूना, १९५९), प्रस्तावना, पृ०९ । २. मुक्तकेषु प्रबन्धेष्विव रसबन्धाभिनिवेशिनः । यथा आमरुकस्य कवेर्मुक्तकाः शृङ्गाररसस्यन्दिनः प्रबन्धायमानाः प्रसिद्धा एव । ३. अमरुककवेरेकः श्लोकः प्रबन्धशतायते । ४. चि० रा० देवघर, पूर्वोक्त, प्रस्तावना, पृ० ११-१२ । १९८ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन -ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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