Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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पाकशालाका ऊपरि अधिकारी अवधानियाँ (१) दहेरासरी-देवस्थानोंकी देखरेख रखनेवाला एवं भण्डारी (खण्ड ४ कड़ी ३९-४२) का 'पान कपूर देनेवाला थईआत' (खण्ड ४, कड़ी ५२) का तथा 'महिता कुंडलिया टावरी' (खण्ड ४, २६२) और सेजपाल (खण्ड ४, कड़ी १८१-१९३) का भी उल्लेख है। खण्ड ४, कड़ी १२-२०में जालौर-वर्णनमें नगरके व्यवसाय और व्यवसायियोंका निर्देश ध्यान देने योग्य है इसमें वणिक ज्ञातिके सम्बन्धमें कहा है
वीसा दसा विगति विस्तरी, एक श्रावक एक माहेसरी जो, गुजरात एवं राजस्थानके लिए वर्तमानमें भी सत्य सिद्ध होता है । वर्णकोंमें राजलोग और पौरलोगोंकी अपेक्षा अधिक विस्तृत नामावलि उपलब्ध होती है । (वर्णक समुच्चय, भाग २ सूचीयें पृ० १७६-१८५) जो तुलनात्मक रूपसे इसके साथ करते हए अध्ययन करने योग्य है ।
'कान्हड़देप्रबन्ध' के तृतीय खण्ड (कड़ी ३७-६८) और चतुर्थ खण्ड (कड़ी ४३-४५) में कान्हड़देवकी सेवामें सज्जित विभिन्न वंशोंके राजपूतोंकी वार्ता है उसमें 'हूण' वंश भी है
बलवन्ता वारड नई हूण, तेह तणइ मुखि मांडइ कूण (खण्ड ३ कड़ी ३८)
एक राउत चाउडा हूण, अति फुटरा उतारा लण, (खण्ड ४ कड़ी ४४) 'कान्हड़देप्रबन्ध' के नायकसे पूर्व हए शाकंभरीके चौहाण बीसलदेव अथवा विग्रहराजने अजमेरमें सं० १२१०में बनाई हुई पाठशालामेंके (जिसको बादमें मस्जिदके रूप में बदल दिया गया था और जो वर्तमानमें ढाई दिनका झोंपड़ा, के नामसे पहचानी जाती है) उत्कीर्ण दो संस्कृत नाटक-विग्रहराज स्वरचित 'हरकेलि' और उसके सभापंडित सोमदेव रचित 'ललितविग्रहराज' शिलाखण्ड पर लिखकर बादमें खोदनेवाले पंडित भास्कर 'हण' राजवंशमें जन्मे हुए एवं भोजराजके प्रतिपात्र विद्वान् गोविन्दके पुत्र पंडित महिपालका पुत्र था, ऐसा इन नाटकोंके अन्तमें वर्णित है। ('इण्डियन एण्टीक्वेरी' पु० २० पृ० २१०-१२) माणिक्यसुन्दर सूरि कृत पृथ्वीचन्दचरित्र, (प्राचीन गुर्जर काव्यसंग्रह पृ० १२५) में तथा 'वर्णक समुच्चय' भाग १ (पृ० ३३ पंक्ति १२) में भी राजवंश वर्णनमें 'हूण' है। गुजरातके रेबारियोंमें 'हूण' अटक है तथा श्री सुन्दरम्की 'गट्टी' नवलिकामें बारया ज्ञातिका युवक जब अपनी ससुराल आता है तो उसका स्वागत उसकी सालिये 'आशा होण 'हूण' आये ! आशा होण आये !! कहते हुए करती है। यहाँ प्रजामें हूण जाति किस प्रकारसे समाविष्ट हो गई होगी, इसका कुछेक अनुमान इन प्रयोगोंपरसे हो आता है।
'कान्हदेप्रबन्ध' में से स्थापत्य एवं नगर-रचना सम्बन्धी उल्लेख पृथक करके श्री नरसिंहराव ने सूची के रूप में संक्षिप्त विवरण दिया है (पुरोवचन, पृ० १३-१४) इसी परम्पराके अनुरूप लगभग समकालीन वर्णन और इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख वर्णकोंमें भी देखनेको मिलता है। ('वर्णक समुच्चय', भाग २ सांस्कृतिक अध्ययन, पृ०८८-९४, सूचीयें पृ० १७१-७५) इसके साथ-साथ मध्यकालीन गुजरात राजस्थानमें रचे गये मारू-गर्जर एवं संस्कृत साहित्यमेंके विभिन्न वर्णन और विपुल उल्लेखोंके साथ तुलनासे तथा शक्य हो सके वहाँ तत्कालीन स्थापत्य, शिल्प एवं चित्रोंके साथ संयोजन करनेसे इस विषयमें बहुत नवीन जानकारी प्राप्त होती है अथवा ज्ञात वस्तुओंमें महत्त्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है, ऐसा है।
पद्मनाभने 'कान्हड़देप्रबन्ध में जालौरके किलेपरके तथा इसकी तलहटीके नगरमेंके प्रसंगवश वर्णनको लक्षमें रखकर जिन विविध स्थलोंका निर्देशन किया है वे समस्त आज भी देखे जा सकते हैं, पहचाने जा सकते हैं अथवा उनका स्थान निर्णय हो सकता है। प्राचीन साहित्य रचनामें निर्दिष्ट भूगोलका प्रत्यक्ष परिचय इस विशिष्ट रीतिसे एक आकर्षक विषय है। इस काव्यमें वर्णित स्थानोंका प्रत्यक्ष-दर्शन कर लेने के
२२२ : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ
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