Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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अपेक्षा दूसरे विकल्पको ही वरण कर सकते थे । ऐसा ही हुआ भी । सबने प्राणोंकी बाजी लगा दी । घमासान युद्ध छिड़ गया। कान्हड़दे युद्ध करता हुआ मारा गया। साठ दिनतक राजकुमार वीरमदेने भी युद्ध किया । इसी बीच रानियोंने जौहर किया। वीरमदेवने जब देखा कि युद्धको उस समय चालू रखनेकी सम्भावना नहीं थी और उसका पराजित होकर बन्दी होना निश्चित-सा ही था तो उसने विवश होकर स्वयं अपने उदरमें कटार भोंक दी और शत्रु पक्षके अनेक सामन्तोंको मौत के घाट उतार करके उसने अपने प्राण दे दिये। फीरोजाकी घाय उसके सिरको लेकर दिल्ली चल दी और उसने फीरोजाको भेंट कर दिया । राजकुमारीने वीरमदेवकी वीरता एवं क्षत्रिय वंश-परम्परागत हठ एवं बलिदान से मुग्ध होकर उसके सिरको स्वयं लेकर यमुनातटपर पहुँचनेका निश्चय किया और वह वहाँ पहुँच भी गई। वहाँ पहुँचनेपर उसने उसका विधिवत् संस्कार किया और तदनन्तर वह यमुनामें उसके सिरको लेकर कूद पड़ी । इस प्रकार फ़ीरोज़ाने अपने हार्दिक प्रेमको जो वह अपने अन्तस्तलमें छिपाये भी स्वयं आत्मसात् होकर प्रमाणित कर दिया।
उपरोक्त रोचक एवं ऐतिहासिक वृत्त हमें केवल कान्हड़दे प्रबन्धसे ही विस्तारपूर्वक ज्ञात होता है। सम्भव है कि इस कथामें कुछ अतिशयोक्तिका पुट हो पर फीरोज़ा और वीरमदेके प्रेमका वर्णन और ग्रन्थोंसे भी ज्ञात होनेसे कान्हड़देके ऐतिहासिक ग्रन्थ होने की पुष्टि होती है । यह एक ही ऐतिहासिक ग्रन्थ है जिसके द्वारा एक मुस्लिम राजकुमारीका एक राजपूत कुमारके प्रति सच्चा प्रेम तथा बलिदानका ज्वलन्त प्रमाण प्रस्तुत किया गया है ।
कुछ भी हो, कान्हड़दे प्रबन्ध जालौर तथा अलाउद्दीन द्वारा उसपर किये गये आक्रमणोंके सम्बन्ध में जाननेका अपूर्व ग्रन्थ है ।
२१० अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ :
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