Book Title: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Part 2
Author(s): Dashrath Sharma
Publisher: Agarchand Nahta Abhinandan Granth Prakashan Samiti
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हर्ष सं० ८४के भरतपुरके पास कोट गांवके लेखमें ब्राह्मण लोहादित्य द्वारा गायोंकी रक्षा करते हुए मृत्युको प्राप्त करना वणित है। अजमेरके राजकीय संग्रहालयमें संगृहीत और बयानासे प्राप्त एक पूर्वमध्यकालीन शिलालेखमें भी ऐसा ही उल्लेख है। इसमें गायोंकी कई आकृतियां उत्कीर्ण है और एक पुरुष पीछे अंकित बतलाया गया है।
स्मृतिलेखोंमें साधारणतया "चरणयुगल' बनाकर उनपर छोटा लेखा खुदा रहता है। राजस्थानमें ऐसे लेख बड़ी संख्यामें मिलते हैं। इन्हें “पगलिया" कहते हैं । जैन साधुओंकी मृत्युके बाद निषेधिकायें बनायी जाती थीं जिनपर कई लेख मिले हैं।
स्तम्भलेख भी महत्त्वपूर्ण है। स्तम्भोंको कई नामोंसे जाना जाता है। यथा यष्ठि, यट्टि, लष्टि, लग केतन, यूप आदि । राजस्थानसे प्राप्त स्तम्भलेखोंको निम्नांकित भागों में बांट सकते हैं - (क) यज्ञस्तुप सम्बन्धी लेख (२) कीत्तिस्तम्भके लेख और अन्यस्तम्भ लेख
राजस्थानसे यक्षस्तुप बड़ी संख्यामें मिले हैं। ये स्तम्भ यक्षोंकी स्मृतिको चिरस्थायी रखने के लिए बनाये जाते थे। धर्मग्रन्थोंमें काष्ठके स्तम्भ बनानेका उल्लेख है। दक्षिणी पूर्वी राजस्थान से ही ये लेख अधिक संख्यामें प्राप्त हुए हैं । यक्षोंकी पुनरावृत्ति मौर्योंके बादसे हुई थी। वैदिक यक्षोंकी प्रतिक्रिया स्वरूप बौद्ध और जैन धर्मोंका उदय हुआ था किन्तु कालान्तरमें इन धर्मोंकी क्रियाओंका जनमानसपर प्रभाव होते हुए भी वे वैदिक परम्परायें छोड़ नहीं सके थे । इसीलिए समय पाकर फिर वैदिक यज्ञोंका पुनरुद्धार हुआ। यह भावना इतनी अधिक बलवती हुई कि यहाँ तक जैन शासक खारवेल तक इससे अछूते नहीं रह सके । राजस्थानमें यज्ञोंसे सम्बन्धित प्राचीनतम लेख नगरीका है। यह लगभग २री शताब्दी ई० पू० का है। इसमें 'अश्वमेध" करनेका उल्लेख है। इस प्रकारके एक अन्य लघुलेखमें वहीं वाजपेय यज्ञका उल्लेख है। शुंगकालके बाद भागवत धर्म तेजीसे बढ़ा। सं०२८२के नान्दशा के यूपलेख बड़े महत्त्वपूर्ण है। ये मालव जातिसे सम्बन्धित हैं। यहां २ स्तम्भ हैं । इनमेंसे एकके ऊपरका भाग खंडित हो गया है । दूसरे स्तम्भपर एक ही लेखको एक बार आड़ा और एक बार खड़ा खोदा गया है। एक ही लेखको २ बार खोदनेका क्या प्रयोजन रहा होगा ? स्पष्ट नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारम्भमें लेख बहुत ही ऊपर खोदा गया था। जो जनसाधारण द्वारा सुविधासे पढ़ा नहीं जा सका होगा इसी कारण उसी भागको दुबारा फिर खोदा गया प्रतीत होता है। लेखके प्रारम्भमें, "प्रथम चंद्रदर्शनमिव मालवगण विषयमवतारयित्वा" शब्दोंका प्रयोग हो रहा है। संभवतः उस समय मालवोंने क्षत्रपोंको हटाकर अपने राज्यका उद्धार किया था। वरनालासे सं० २८४ और ३३५के लेख मिले हैं। सं० २८४के लेखमें ७ स्तम्भ लगानेका उल्लेख है । इस समय केवल एक ही स्तम्भ मिला है । सं०३३५के लेखमें अन्तमें "धर्मो वर्धताम्' शब्द है । इसमें त्रिराज्ञ यज्ञ करने का उल्लेख मिलता है। कोटाके बड़वा गांवसे सं० २९५के यप लेख मिले हैं। इनमें मौखरी वंशके बलवर्द्धन सोमदेव बलसिंह आदि सेनापतियोंका उल्लेख है। णिचपुरिया (नगर) के मठसे" सं० ३२१का लघु यूप मिला है। इसमें धरकके
१. एपिग्राफिआ इंडिका भाग १६ पृ० २५। आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया मेमोयर सं०४ । राजपूताना ___ म्युजियम रिपोर्ट १९२६-२७ पृ० २०४ । २. इंडियन एंटीक्वेरी भाग LVII पृ० ५६ । एपिग्राफिआ इंडिका भाग २७ में प्रकाशित । ३. एपिग्राफिआ इंडिका भाग २६ पृ० ११८ । ४. धोटाराज्यका इतिहास भाग १ परिशिष्ट सं० १ । ५. मरुभारती भाग १ अंक २ १०३८-३९ । शोधपत्रिका वर्ष २० अंक २ प०२०-२७ ।
इतिहास और पुरातत्त्व : १२७
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