Book Title: Agam Sutra Satik 45 Anuyogdwar ChulikaSutra 2
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अनुयोगद्वार-चूलिकासूत्रं एतेषु मध्ये जीवेषु नारकादिषु षडेव भङ्गा सम्भवन्ति, शेषास्तु विंशतिर्भङ्गका रचनामात्रेणैव भवन्ति, न पुनः क्वचित् सम्भवन्ति, अतः प्ररूपणामात्रतयैव ते अवगन्तव्याः, एतत् सर्व पुरस्ताव्यक्तीकरिष्यते, कियन्तः पुनस्ते द्व्यादिसंयोगा: प्रत्येकं सम्भवन्ति इत्याह-'तत्थ नं दस दुगसंजोगा' इत्यादि, पञ्चानामौदयिकादिपदानां दश द्विकसंयोगा: दशैव त्रिकसंयोगाः पञ्च चतुःसंयोगा: एकस्तु पञ्चकसंयोग: संपद्यत इति, सर्वेऽपि षड्विंशतिः । तत्र के पुनस्ते दश द्विकसंयोगा इति जिज्ञासायां प्राह__ मू.(१६३ वर्तते) एत्थणं जे ते दस दुगसंजोगा ते णं इमे-अत्थि नामे उदइएउवसमनिष्कने १ अत्थि नामे उदइएखाइगनिष्फो २ अत्थि नामे उदइएखओवसमनिप्फने ३ अस्थि नामे उदइएपरिणामिअनिष्फन्ने४ अस्थि नामे उवसमिएखयनिष्फो५ अत्थिनामे उवसमिएखओवसमनिप्फने ६ अत्थि नामे उवसमिएपरिणामिअनिप्फन्ने ७ अत्थि नामे खइएखओवस. मनिष्फन्ने ८ अत्थि नामे खइएपारिणामिअनिप्फन्ने ९ अस्थि नामे खओवसमिएपारिणामिअ-- निप्फन्ने १०॥ ___ कयरे से नामे उदइएउवसमनिप्फन्ने?, उदइएत्ति मनुस्से उवसंता कसाया, एस णं से नामे उदइएउवसमनिप्फन्ने?, कयरे से नामे उदइएखयनिप्फन्ने?, उदइएत्ति मनुस्से खइअंसम्मत्तं, एस णं से नामे उदइएखयनिष्फने २, कयरे से नामे उदइएखओवसमनिप्फने?, उदइएत्ति मनुस्से खओवसमिआईइंदिआई, एसणं से नामे उदइएखओवसमनिप्फने ३, कयरे से नामे उदइएपरिणामिअनिष्फन्ने?, उदइएत्ति मनुस्से पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइएपारिणामिअनिष्फन्ने४, कयरे से नामे उवसमिएखयनिप्फने?, उवसंता कसाया खइअंसम्मत्तं, एसणं से नामे उवसमिएखयनिष्फन्ने५ कयरे से नामे उवसमिएखओवसमनिप्फने?, उवसंता कसाया खओवसमिआई इंदिआई, एसणं से नामे उवसमिएखओवसमनिप्फन्ने ६, कयरे से नामे उवसममिएपरिणामिअनिष्फन्ने?, उवसंता कसाया पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उवसमिएपारिणामिअनिप्फने ७, कयरे से नामे खइएखओवसमनिप्फने?, खइयं सम्मत्तं खओवसमिआइं इंदिआई, एस णं से नामे खइएखओवसमनिप्फन्ने ८, कयरे से नामे खइएपारिणामिअनिष्फो?, खइअंसम्मतं पारिणामिए जीवे, एसणंसे नामे खइएपारिणामिअनिष्फने ९, कयरे से नामे खओवसमिएपारिणामिअनिष्फो?, खओवसमिआइं इंदिआई पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे खओवसमिएपारिणामिअनिष्फने १०।।
वृ. नामाधिकारादित्थमाह-अस्ति तावत्सान्निपातिकभावान्तर्वति नाम विभक्तिलोपादौदयिकौपशमिकलक्षणाभावद्वयनिष्पन्नमित्येको भङ्गः, एवमन्येनाप्युपरितनभावत्रयेण सह संयोगादौदयिकेन चत्वारो द्विकसंयोगा लब्धाः, ततस्तत्परित्यागे औपशमिकस्योपरितनभावत्रयेण सह चारणायां लब्धास्त्रयः, तत्परिहारे क्षायिकस्योपरितनभावद्वयमीलनायां लब्धौ द्वौ, ततस्तं विमुच्य क्षायोपशमिकस्य पारिणामिकमीलने लब्ध एक इति सर्वेऽपि दश, एवं सामान्यतो द्विकसंयोगभङ्गकेषु दर्शितेषु विशेषतस्तत्स्वरूपमजानन् विनेयः पृच्छति___ 'कयरे से नामे उदइए?' इत्यादि अनोत्तरम्-'उदइएत्ति मनुस्से'इत्यादि, औदयिके भावे मनुष्यत्वं-मनुष्यगतिरिति तात्पर्यम्, उपलक्षणमात्रं चेदं, तिर्यगादिगतिजातिशरीरनामा
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