Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 274 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः प्रथमो विभागः उड्ड उच्चतेणं होत्था 4 / दोन्नि य पलियोवमा परमाउं पालइत्था / एवमिमीसे योसप्पिणीए जाव पालयित्था 6 / एवमागमेस्साते उस्सप्पिणीए जाव पालिस्संति 7 / जंबुद्दीवे दीवे भरहेरचएसु वासेसु एगसमये एगजुगे (एगजुगे एगसमये) दो अरिहंतवंसा उप्पजिंसु वा उप्पज्जति वा उप्पजिस्संति वा / एवं चकवट्टिवंसा / दसारवंसा 10 / जंबूभरहेरवएसु एगसमते दो अरहंता उपजिसु वा उप्पज्जति वा उपजिस्संति वा 11 // एवं चक्कवट्टिणो 12 / एवं बलदेवा एवं वासुदेवा (दसारवंसा) जाव उप्पजिसु वा उप्पज्जंति वा उप्पजिस्संति वा 13 / जंबू० दोसु दुरासु मणुया सया सुसमसुसममुत्तमिडिं पत्ता पचणुब्भवमाणा विहरंति, तंजहा-देवकुराए चेव उत्तरकुराए चेव 14 // जंबूद्दीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसमुनमं इढेि पत्ता पञ्चगुब्भवमाण। विहरंति तंजहा-हरिवासे चेव रम्मगवासे चेव 15 जंबीवे दीवे दोसु वासेसु मणुया सया सुसमदु समुत्तममिड्डिं पत्ता पचणुभवमाणा विहरंति तंजहा-हेमवए चेव एरन्नवए चेव 16 / जंबूदीवे दीवे दोसु खित्तेसु मणुया सया दूसमसुसममुतममिट्टि पत्ता पचणुभवमाणा विहरंति, तंजहा--पुत्वविदेहे चेव अवरविदेहे चेव 17 / जबदीवे दीव दोसु वासेसु मणुया इग्विहंपि कालं पञ्चणुभवमाणा विहरंति, तजहा-भरह चेव एरवते चेव 18 ॥सू० 86 // जंबहीवे दीवे दो चंदा पभासिसु वा पभासंति वा पभासिरसंति वा, दो सूरिश्रा तर्विसु वा तवंति वा तविस्संति वा, दो कत्तिया, दो रोहि. णीयो, दो मगसिरायो, दो ग्रहायो, एवं भाणियव्वं / “कत्तिय' रोहिणि मगसिर यदा य ५पुणव्वसू अपूसो य / तत्तोऽवि "अस्सलेसा महा य दो -1 फग्गुणीयो य // 1 // 1 हत्थो १२चित्ता १३साई १४विसाहा तहय होति १अणुराहा / १६जेट्ठा भूलो १८पुव्वा य श्रासादा १५उतरा चेव // 2 // २०-२१-२२अभिईसवणधणिट्ठा ३सयभिसया दो य होंति२४-२५भवया। २६रेवति २"अस्सिणि २-भरणी नेतव्या पाणुपुब्वीर // 3 // एवं गाहाणुसारेणं णेयव्वं

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