Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 186
________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / / अध्ययनं 6 ] [ 435 कताती सेयसंखतलविमलसन्निकासे चउद्दते हत्थिरयणे समुप्पजिहिति, 5 // तए णं से देवसेणे राया तं सेयं संखतलविमलसन्निकासं चउद्दतं हत्थिरयणं दुरुढे समाणे सतदुवारं नगरं मझमझेणं अभिक्खणं (2) अतिजाहि त णिजाहि त, तते णं सतदुवारे णगरे-बहवे रातीसरतलवर जाव अन्नमन्नं सदाविति (2) एवं वइस्संति-जम्हा णं देवाणुप्पिया! अम्हं देवसेणस्स रनो सेते संखतलविमलसन्निकासे चउदंते हत्थिरयणे समुप्पन्ने तं होऊ णमम्हं देवाणुप्पिया ! देवसेणस्स रन्नो तच्चेवि नामधेज्जे विमलवाहणे, तते णं तस्स देवसेणस्स रन्नो तच्चेवि णामधेज्जे भविस्सति विमलवाहणे 2, 6 / तए णं से विमलवाहणे राया तीसं वासाई अगारवासमज्झे वसित्ता अम्मापितीहिं देवत्तगतेहिं गुरुमहत्तरतेहिं अब्भणुनाते समाणे उमि सरए संबुद्धे अणुत्तरे मोक्खमग्गे पुणरवि लोगंतितेहिं जीयकप्पितेहिं देवेहिं ताहिं इटाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं उरालाहिं कल्लाणाहिं धनाहिं सिवाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीबाहिं वग्गूहिं अभिणदिज्जमाणे अमिथुवमाणे य बहिया (संबोहिए) सुभूमिभागे उजाणे एगं देवदूसमादाय मुडे भवित्ता अगारायो अणगारियं पव्वयाहिति, तस्स णं भगवंतस्स साइरेगाई दुवालस वासाइं निच्चं वोसट्टकाए चियत्तदेहे जे केई उवसग्गा उप्पजति तंजहादिव्या वा माणुसा वा तिरिवखजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहिस्सइ खमिस्सइ तितिक्खिस्सइ अहियासिस्सइ 7 तए गां से भगवं ईरियासमिए भासाममिए जाव गुत्तवंभयारि अममे यकिंचणे छि(कि)नगं(ग)थे निरुवलेवे कंसपाईव मुक्कतोए जहा भावणाए जाव सुहयहयासणेविव तेयसा जलंते 8 / कंसे संखे जीवे गगणे वाते य सारए सलिले / पुक्खरपत्ते कुंभे विहगे खग्गे य भारंडे // 1 // कुंजर वसहे सीहे नगराया चेव सागरमखोमे / चंदै सूरे कणगे वसुंधरा चेव सुहुयहुए // 2 // नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कथइ पडिबंधे भवइ,से य पडिबंधे चउविहे पन्नत्ते, तंजहा-अंडए वा पोयएइ वा उग्गहेइ

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