Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 189
________________ 438 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धु :: प्रथमो विभागः हरियभोयणेति वा पडिसिद्धे एकामेव महापउमेवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं श्राधाकम्मितं वा जाव हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति 16 / से जहानामते अजो ! मए समणाणं निग्गंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलते धम्मे पगणत्ते एवामेव महापउमेऽवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतितं जाव अचेलगं धम्मं पराणवेहिती 17 / से जहानामए अजो ! मए पंचाणुबतिते सत्तसिवखावतिते दुवालसविधे सावगधम्मे पराणत्ते एवामेव महापउमेऽवि अरहा पंचाणुव्वतितं जाव सावगधम्मं पराणवेस्सति 18 / से जहानामते अजो ! मए समणाणं निग्गंथाणं सेज्जातरपिंडेति वा रायपिं. डेति वा पडिसिद्धे एवामेव महापउमेऽवि अरहा समणाणं निग्गंथाणं सेजातर. पिंडेति वा पडिसेहिस्सति 11 / से जधाणामते अजो! मम णव गणा इगारस गणधरा एयामेव महापउमस्सऽवि अरिहतो णव गणा एगारस गणधरा भविस्संति 20 / से जहानामते अजो ! अहं तीसं वासाइं अगारवासमझे वसित्ता मुडे भवित्ता जाव पव्वतिते दुवालस संवच्छराई तेरस पवखा छउमस्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहिं पक्खेहिं उणगाई तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणित्ता बायालीसं वासाइं सामराणपरियागं पाउणित्ता बावत्तरि वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिझिस्सं जाव सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं एवामेव महापउमेऽवि अरहा तीसं वासाई यागारवासमझे वसित्ता जाव पविहिती दुवालम संवच्छाराइं जाव बावत्तरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती जाव सव्वदुक्खाणमंतं काहिती-“जंसीलसमायारो अरहा तित्थंकरो महावीरो। तस्सीलसमायारो होति उ थरहा महापउमे // 1 // // सू० 613 // इति श्री महापद्मचारित्रं संपूर्णमिति / / णव णवखत्ता चंदस्स पन्छभागा पन्नत्ता, तंजहा-अभिती समणो धणिट्ठा रेवति अस्मिणि मग्गसिर पूसो। हत्थोचित्ता य तहा पच्छंभागा णव हवंति॥१॥ सू० 614 // ग्राणतपाणत यारणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयण,सयाई उद्धं उच्चत्तेणं पन्नत्ता / / सू० 615 //

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