Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ भीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 7 ] [ 111 असुरकुमारनो दुमस्स पायत्ताणिताहिवतिस्स सत्त कच्छायो पन्नत्तायो, तंजहा-पढमा कच्छा जाव सत्तमा कच्छा, 1 / चमरस्स णमसुरिंदस्स असुरकुमारनो दुमस्स पायत्ताणिताधिपतिस्स पढमाए कच्छाए चउसद्धिं देवसहस्सा पन्नत्ता 2 / जावतिता पढमा कच्छा तब्बिगुणा दोचा कच्छा तब्बिगुणा तचा कच्छा एवं जाव जावतिता छट्ठा कच्छा, तब्बिगुणा सत्तमा कच्छा 3 / एवं बलिस्तवि, णवरं महद्दुमे सट्टिदेवसाहस्सितो, सेसं तं चेव, धरणस्स एवं चेव, णवरमट्ठावीसं देवसहस्सा, सेसं तं चेव, जधा धरणस्स एवं जाव महाघोसस्स, नवरं पायत्ताणिताधिपती अन्ने ते पुव्वभणिता 4 / सकस्स णं देविंदस्स देवरन्नो हरिणेगमेसिस्स सत्त कच्छायो पन्नत्ताश्रो, तंजहा-पढमा कच्छा एवं जहा चमरस्स तहा जाव अच्चुतस्स, णाणत्तं पाय; ताणिताधिपतीणं ते पुवभणिता, देवपरीमाणमिमं सकस्स चउरासीतिं देवसहस्सा, ईसाणस्स असीती देवसहस्साई 5 / देवा इमाते गाथाते अणुगंतव्वा-चउरासीति असीति बावत्तरि सत्तरी य सट्ठीया / पन्ना चत्तालीसा तीसा वीसा दससहस्सा / / 1 // जाव अच्चुतस्स लहुपरक्कमस्स दसदेवसहस्सा जाव जावतिता छट्ठा कच्छा तब्बिगुणा सत्तमा कच्छा 6 // सू० 583 // सत्तविहे वयणविकप्पे पन्नत्ते, तंजहा-श्रालावे अणालावे उल्लावे अणुल्ला(ला)वे संलावे पलावे विप्पलावे / सू० 584 // सत्तविहे विणए पन्नत्ते, तंजहा–णागविणए दंसणविणए चरित्नविणए मणविणए वतिविणए कायविणए लोगोश्यारविणए 1 / पसत्थमणविणए सत्तविधे पन्नत्ते, तंजहाअपावते असावज्जे अकिरिते निरुवक से अणराहकरे अच्छविकरे अभूताभिसंकणे 2 / अप्पमत्थमणविणए सत्तविधे पन्नत्ते, तंजहा-पावते सावज्जे सकिरिते सउपक्केसे अराहकरे छविकरे भूताभिसंकणे 3 / पसत्थवइविणए सत्तविधे पत्रत्ते, तंजहा-अपावते असावज्जे जाव अभूताभिसंकणे 4 / अपसत्थवइविणते सत्तविधे पन्नत्ते, तंजहा-पावते जाव भूताभिसंकणे 5 /

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