Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 164
________________ बीमत्स्थानाङ्गस्त्रम् : अन्पयनं 7 ] [ 413 मघा पुव्वा फग्गुणी उत्तरा फग्गुणी हत्यो चित्ता 1 // सातितातिया णं सत्त णक्खत्ता उत्तरदारिता पन्नत्ता, तंजहा-साति विसाहा अणुराहा जेट्ठा मूलो पुवासाढा उत्तरासादा 5 // सू० 586 // जंबूदीवे दीवे (2) सोमणसे वक्खारपब्वते सत्त कूडा पन्नत्ता, तंजहा-सिद्धे 1 सोमणसे 2 तह बोद्धब्बे मंगलावतीकूडे 3 / देवकुरु 4 विमल 5 कंचण 6 विसिट्ठकूडे 7 त बोद्धव्वे // 1 // जंबूदीवे (2) गंधमायणे वक्खारपवते सत्त कूडा पन्नत्ता, तंजहा-सिद्धे त गंधमातण बोद्धव्वे गंधिलावतीकूडे / उत्तरकुरू फलिहे लोहितक्ख पाणंदणे चेव // 1 // सू० 510 // बितिंदिताणं सत्त जातीकुलकोडिजोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता // सू० 511 // जीवा णं सत्तट्ठाणनिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तंजहा–नेरतियनिव्वत्तिते जाव देवनिव्वत्तिए एवं चिण जाव णिजरा चेव // सू० 512 // सत्तपतेसिता खंधा अणंता पराणत्ता सत्तपतेसोगाढा पोग्गला जाव सत्तगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पराणत्ता // सू० 513 // // सत्तमट्ठाणं सम्मत्तं // सत्तमं श्रज्मयणं सम्मत्तं // ॥इति सप्तमस्थानाख्यं सप्तममध्ययनम् // 7 // // अथाष्टमस्थानकाख्यमष्टममध्ययनं // श्रहिं ठाणेहिं संपन्ने श्रणगारे अरिहति एगल्लविहारपडिमं उवसंपजित्ताणं विहरित्तते, तंजहा-सड्डी पुरिसजाते सच्चे पुरिसजाए मेहावी पुरिसजाते बहुस्सुते पुरिसजाते सत्तिमं अप्पाहिकरणे घितिमं वीरितसंपन्ने // सू० 514 // अट्ठविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तंजहा-अंडगा पोतगा जाव उब्भिगा उववातिता 1 / अंडगा अगतिता अट्ठागइथा पनत्ता, तंजहा-अंडए अंडएसु उववजमाणे अंडएहिंतो वा पोततेहिंतो वा जाव उववातितेहितो वा उववज्जेजा, से चेव णं से अंडते अंडगत्तं विप्पजह

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