Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 178
________________ भीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् / अध्ययनं 8 ] [ 425 651 // जीवा णं अट्ठाणणिव्वत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तंजहा-पढमसमयनेरतितनिव्वत्तिते जाव अपढमसमयदेवनिव्वत्तिते, एवं चिण उवचिण जाव निजरा चेव, अट्ठपतेसिता खंधा अणंता पराणत्ता, अट्ठपतेसोगाढा पोग्गला श्रणंता पराणत्ता जाव अट्टगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पराणत्ता // सू० 660 // अट्ठमं ठाणं सम्मत्तं // अट्टमं अज्झयणं सम्मत्तं / / ॥.इति अष्टस्थानाक्यमष्टममध्यपनम् // 8 // : // अथ नवस्थानकाख्यं नवममध्ययनम् // ‘नवहिं गणेहिं समणे णिग्गंथे संभोतितं विसंभोतितं करेमाणे णातिकमति, तंजहा थायरियपडिणीयं उवज्झायपडिणीयं थेरपडिणीयं कूलपडिणीयं गणपडिणीयं संघपडिणीय नाणपडिणीयं दंसणपडिणीयं चरित्तपडिणीयं // सू० 661 / / णव बंभचेरा पन्नत्ता तंजहा-सस्थपरिन्ना लोगविजयो जाव उवहाणसुयं महापरिगणा // सू० 662 // नव बंभचेरगुत्तीतो पन्नत्तायो, तंजहा-विवत्ताई सयणासणाइं सेवित्ता भवति णो इत्थिसंसत्ताई नो पसुसंसत्ताई नो पंडगसंसत्ताई 1 नो इत्थिणं कहं कहेत्ता 2 नो इत्थिठाणाई सेवित्ता भवति 3 णो इत्थीणमिंदिताई मणोहराई मणोरमाई थालोइत्ता निज्माइत्ता भवइ 4 णो पणीतरसभोती 5 णो पाणभोयणस्स अतिमत्त(मातं) श्राहारते सता भवति 6 णो पुवरतं पुन्वकीलियं समरेत्ता भवति 7 णो सदाणुवाती णो रूवाणुवाती णो सिलोगाणुवाती 8 णो सातसोक्खपडिबद्धे यावि भवति 1, 1 / णव बंभचेरगुत्तीयो पन्नत्तायो, तंजहा–णो विवत्ताई सयणासणाई सेवित्ता भवइ, इत्थीसंसत्ताई पसु. संसत्ताइं पंडगसंसत्ताई इत्थीणं कहं कहेत्ता भवइ, इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवति, इत्थीणं इंदियाइं जाव निज्माइत्ता भवति, पीयरसभोई पाराभोय.

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