Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमत्स्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 5 ] [ 381 ठविया कसिणा अकसिणा हाडहडा॥ सू० 433 // जंबुद्दीवे (2) मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महानईए उत्तरेणं पंच वक्खारपबता पनत्ता तंजहा-मालवंते चित्तकूडे पम्हकूडे णलिणकुडे एगसेले 1 / जंबूमंदरस्स पुरषो सीताए महानदीए दाहिणेणं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता तंजहातिकूडे वेसमणकूडे अंजणे मायंजणे सोमणसे 2 / जंबूमंदरस्स पचत्थिमेणं सीश्रोताते महाणदीए दाहिणेणं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता तंजहा-विज्जुप्पमे अंकावती पम्हावती श्रासीविसे सुहावहे 3 / जंबूमंदरपञ्चत्थिमेणं सीतोताते महानदीते उत्तरेणं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता तंजहा-चंदपव्वते सूरपब्बते णागपवते देवपव्वते गंधमादणे 4 / जंबूमंदरदाहिणेणं देवकुराए कुराए पंच महदहा पन्नत्ता तंजहा-निसहदहे देवकुरुदहे सूरदहे सुलसदहे विज्जुप्पभदहे 5 / जंबूमंदरउत्तरकुराते कुराए पंच महदहा पन्नत्ता तंजहा-नीलवंतदहे उत्तरकुरुदहे चंददहे एरावणदहे मालवंतदहे 6 / सव्वेवि णं वक्खारपव्वया(ते) सीया सीबोयाश्रो महाणईयो मंदरं वा पव्वतंतेणं पंच जोयणसताई उड्ड उच्चत्तेणं पंचगाउयसताई उव्वेहेणं 7 / धाय. इसंडे दीवे पुरिच्छमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं सीताते महाणतीते उत्तरेणं पंच वक्खारपब्वता पनत्ता तंजहा-मालवंते एवं जधा जंबुद्दीवे तथा जाव पुक्खरवरदीवड्डपञ्चत्थिमद्धे वक्खारा दहा य उच्चत्तं भाणियव्वं 8 / समयक्खेत्ते णं पंच भरहाइं पंच एरवताई एवं जधा चउट्ठाणे बितीयउद्दे से तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव पंच मंदरा पंच मंदरचूलितायो, णवरं उसुयारा णत्थि // सू० 434 // उसमे णं परहा कोसलिए पंच. धणुसताई उड्ड उच्चत्तेणं होत्था 1 / भरहे णं राया चाउरंतचकवट्टी पंच धणुसयाई उड्ड उच्चत्तेणं हुत्था 2 / बाहुबली णमणगारे एवं चेव 3 / बंभीगामज्जा एवं चेव 4 / एवं सुदरीवि 5 // सू० 435 // पंचहिं ठाणेहिं सुत्ते विबुझेजा, तंजहा-सद्दणं फासेणं भोयणपरिणामेणं णिदक्ख

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