Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 03 of 01
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 156
________________ श्रीमत्त्थानाङ्गसूत्रम् :: अध्ययनं 7 ] [ 405 तीयो / जाणाहिति सो गाहिइ सुसिक्खियो रंगमज्झम्मि // 22 // भीतं दुतं रहस्सं (उप्पिच्छं) गायंतो मा त गाहि उत्तालं / काकस्सरमणुनासं च होंति गेयस्स छद्दोसा // 23 // पुन्नं 1 रत्तं 2 च अलंकियं 3 च वत्तं 4 तहा अविघुटुं५ / मधुरं 6 सम 7 सुकुमारं 8 अट्ठ गुणा होंति गेयस्स // 24 // उरकंठसिरपसत्थं च गेज्जते मउरिभित्रपदबद्धं / समतालपडुक्खेवं सत्तसरसीहरं गीयं // 25 // निदोसं सारवंतं च, हेउजुत्तमलंकियं / उवणीय सोवयारं च, मियं मधुरमेव य // 26 // सममद्धसमं चेव, सव्वत्थ विसमं च जं / तिन्नि वित्तप्पयाराई, चउत्थं नोपलब्भती // 27 // सकता पागता चेव, दुहा भणितीयो अाहिया। सरमंडलंमि गिज्जते, पसत्था इसिभासिता // 28 // केसी गातति य मधुरं ? केसी गातति खरं च रुक्खं च ? / केसी गायति चउरं? केसि विलंबं ? दुतं केसी ? // 21 // विस्सरं पुण केरिसी ? // सामा गायइ मधुरं काली गायइ खरं च रुक्खं च / गोरी गातति चउरं काण विलंबं दुतं अंधा // 30 // विस्सरं पुण पिंगला // तंतिसमं तालसमं पादसमं लयसमं गहसमं च / नीससिऊससियसमं संचारसमा सरा सत्त // 31 // सत्त सरा य ततो गामा, मुच्छणा एकवीसती। ताणा एगूणपराणासा, समत्तं सरमंडलं // 32 // सू० 553 // इति सरमंडलं समत्तं // सत्तविधे कायकिलेसे पराणत्ते, तंजहा-ठाणातिते उपकुडुयासणिते पडि. मठाती वीरासणिते सजिते दंडातिते लगंडसाती॥ सू० 554 // जंबुहोवे (2) सत्त वासा पन्नता, तंजहा-भरहे एरवते हेमवते हेरनवते हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे 1 / जंबुदीवे (2) सत्त वासहरपव्वता पन्नत्ता, तंजहा-चुल्लहिमवंते महाहिमवंते निसढे नीलवंते रुप्पी सिहरी मंदरे 2 / जंबुद्दीवे (2) सत्त महानदीयो पुरस्थाभिमुहीयो लवणसमुद्द समप्पेंति, तंजहा-गंगा रोहिता हिरी सीता हरकता सुवराणकूला रत्ता 3 / जंबुद्दीवे (2) सत्त महानतीयो पच्चस्थाभिमुहीयो लवणसमुद्द

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