Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 12
________________ जा आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र - ७२ द्विपद-उपक्रम क्या है ? नटों, नर्तकों, जल्लों, मल्लों, मौष्टिकों, वेलंबकों, कथकों, प्लवकों, तैरने वालों, लासकों, आख्यायकों, लंखों, मंखों, तूणिकों, तुंबवीणकों, कावडियाओं तथा मागधों आदि दो पैर वालों का परिकर्म और विनाश करने रूप उपक्रम द्विपदद्रव्योपक्रम है। सूत्र - ७३ चतुष्पदोपक्रम क्या है ? चार पैर वाले अश्व, हाथी आदि पशुओं के उपक्रम चतुष्पदोपक्रम हैं। सूत्र -७४ अपद-द्रव्योपक्रम क्या है ? आम, आम्रातक आदि बिना पैर वालों से सम्बन्धित उपक्रम अपद-उपक्रम हैं। सूत्र - ७५ अचित्तद्रव्योपक्रम क्या है ? खांड, गुड़, मिश्री अथवा राब आदि पदार्थों में उपायविशेष से मधुरता की वृद्धि करने और इनके विनाश करने रूप उपक्रम अचित्तद्रव्योपक्रम हैं। सूत्र - ७६ मिश्रद्रव्योपक्रम क्या है ? स्थासक, दर्पण आदि से विभूषित एवं मंडित अश्वाद सम्बन्धी उपक्रम मिश्रद्रव्योपक्रम हैं। सूत्र-७७ क्षेत्रोपक्रम क्या है ? हल, कुलिक आदि के द्वारा जो क्षेत्र को उपक्रान्त किया जाता है, वह क्षेत्रोपक्रम है। सूत्र-७८ कालोपक्रम क्या है ? नालिका आदि द्वारा जो काल का यथावत् ज्ञान होता है, वह कालोपक्रम है। सूत्र - ७९ भावोपक्रम क्या है ? दो प्रकार हैं । आगमभावोपक्रम, नोआगमभावोपक्रम । भगवन् ! आगमभावोपक्रम क्या है ? उपक्रम के अर्त को जानने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो, वह आगमभावोपक्रम हैं । नोआगमभावोपक्रम दो प्रकार का है । प्रशस्त और अप्रशस्त । अप्रशस्त भावोपक्रम क्या है ? डोडणी ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि का अन्य के भावों को जानने रूप उपक्रम अप्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है। प्रशस्त भावोपक्रम क्या है ? गुरु आदि के अभिप्राय को यथावत् जानना प्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है। सूत्र-८० अथवा उपक्रम के छह प्रकार हैं । आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार । सूत्र-८१ आनुपूर्वी क्या है ? दस प्रकार की है। नामानुपूर्वी, स्थापनानुपूर्वी, द्रव्यानुपूर्वी, क्षेत्रानुपूर्वी, कालानुपूर्वी, उत्कीर्तनानुपूर्वी, गणनानुपूर्वी, संस्थानानुपूर्वी, सामाचार्यनुपूर्वी, भावानुपूर्वी । सूत्र - ८२ नाम (स्थापना) आनुपूर्वी क्या है ? नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना। द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिए । ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की है। औपनिधिकी और अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी । इनमें से औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी स्थाप्य है । तथा-अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के दो प्रकार हैं-नैगम-व्यवहारनय-संमत, संग्रहनयसंमत । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 12

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