Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र -२, 'अनुयोगद्वार'
अनागत-कालग्रहणविशेषदृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान कहते हैं।
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इनकी विपरीतता में भी तीन प्रकार से ग्रहण होता है अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागतकालग्रहण तृणरहित वन, अनिष्पन्न धान्ययुक्त भूमि और सूखे कुंड, सरोवर, नदी, द्रह और तालाबों को देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ कुवृष्टि हुई है - यह अतीतकालग्रहण है । गोचरी गये हुए साधु को भिक्षा नहीं मिलते देखकर अनुमान किया जाना कि यहाँ दुर्भिक्ष है। यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है।
अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ?
सूत्र - ३०८
सभी दिशाओं में धुंआ हो रहा है, आकाश में भी अशुभ उत्पात हो रहे हैं, इत्यादि से यह अनुमान कर लिया जाता है कि यहाँ कुवृष्टि होगी, क्योंकि वृष्टि के अभाव के सूचक चिह्न दृष्टिगोचर हो रहे हैं ।
सूत्र - ३०९
आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुदृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है।
उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे- साधर्म्यापनीत और वैधर्म्यापनीत । जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्यापनीत कहते हैं उसके तीन प्रकार हैं- किंचित् साधर्म्यापनीत, प्रायः साधर्म्यापनीत और सर्व-साधर्म्यापनीत । जैसा मंदर पर्वत है वैसा ही सर्षप है और जैसा सर्षप है वैसा ही मन्दर है। जैसा समुद्र है, उसी प्रकार गोष्पद है और जैसा गोष्पद है, वैसा ही समुद्र है तथा जैसा आदित्य है, वैसा खद्योत है । जैसा खद्योत है, वैसा आदित्य है । जैसा चन्द्रमा है, वैसा कुंद पुष्प है, और जैसा कुंद है, वैसा चन्द्रमा है । यह किंचित् साधर्म्यापनीत है । जैसी गाय है वैसा गवय होता है और जैसा गवय है, वैसी गाय है । यह प्रायः साधर्म्यापनीत है । सर्वसाधर्म्य में उपमा नहीं होती, तथापि उसी से उसको उपमित किया जाता है । वह इस प्रकार-अरिहंत ने अरिहंत के सदृश, चक्रवर्ती ने चक्रवर्ती के जैसा, बलदेव ने बलदेव के सदृश, वासुदेव ने वासुदेव के समान, साधु ने साधु सदृश किया । यही सर्वसाधर्म्यापनीत है ।
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वैधर्म्यापनीत का तात्पर्य क्या है ? वैधयोंपनीत के तीन प्रकार हैं, यथा- किंचित् वैधम्योंपनीत, प्रायः वैधयोंपनीत और सर्वधर्म्यापनीत किसी धर्मविशेष की विलक्षणता प्रकट करने को किंचित् वैधर्म्यापनीत कहते हैं। जैसा शबला गाय का बछड़ा होता है वैसा बहुला गाय का बछड़ा नहीं ओर जैसा बहुला गाय का बछड़ा वैसा शबला गाय का नहीं होता है । यह किंचित् वैधर्म्यापनीत का स्वरूप जानना । अधिकांश रूप में अनेक अवयवगत विसदृशता प्रकट करना । प्रायः वैधम्योंपनीत हैं। यथा- जैसा वायस है वैया पायस नहीं होता और जैसा पायस होता है वैसा वायस नहीं । यही प्रायः वैधर्म्यापनीत है । जिसमें किसी भी प्रकार की सजातीयता न हो उसे सर्ववैधर्म्यापनीत कहते हैं । यद्यपि सर्ववैधर्म्य में उपमा नहीं होती है, तथापि उसीकी उपमा उसीको दी जाती है, जैसे-नीच ने नीच के समान, दास ने दास के सदृश, कौए ने कौए जैसा, श्वान ने श्वान जैसा और चांडाल ने चांडाल के सदृश किया। यही सर्ववैधयोंपनीत है।
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आगमप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है यथा-लौकिक, लोकोत्तर जिसे अज्ञानी मिध्यादृष्टिजनों ने अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचा हो, उसे लौकिक आगम कहते हैं। यथा महाभारत, रामायण यावत् सांगोपांग चार वेद । उत्पन्नज्ञान - दर्शन के धारक, अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागत के ज्ञाता त्रिलोकवर्ती जीवों द्वारा सहर्ष वंदित, पूजित सर्वज्ञ, सर्वदर्शी अरिहंत भगवंतों द्वारा प्रणीत आचारांग यावत् दृष्टिवाद पर्यन्त द्वादशांग रूप गणिपिटक लोकोत्तरिक आगम हैं ।
अथवा तीन प्रकार का है। जैसे- सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम । अथवा (लोकोत्तरिक) आगम तीन प्रकार का है। आत्मागम, अनन्तरागम और परम्परागम । अर्थागम तीर्थंकरो के लिए आत्मागम है । सूत्र का ज्ञान गणधरों के लिए आत्मागम और अर्थ का ज्ञान अनन्तरागम रूप है । गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्रज्ञान
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दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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