Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' प्रकार का है- जघन्य परीतासंख्यात, उत्कृष्ट परीतासंख्यात और अजघन्य-अनुत्कृष्ट परीतासंख्यात । युक्तासंख्यात तीन प्रकार का है । जघन्य युक्तासंख्यात, उत्कृष्ट युक्तासंख्यात और अजघन्यानुत्कृष्ट युक्तासंख्यात | असंख्यातसंख्यात तीन प्रकार का है । जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्यानुत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात । भगवन् ! अनन्त क्या है ? अनन्त के तीन प्रकार हैं । परीतानन्त, युक्तानन्त और अनन्तानन्त । परीतानन्त तीन प्रकार का है । जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य-अनुत्कृष्ट परीतानन्त । आयुष्मन् ! युक्तानन्त के तीन प्रकार हैं। जघन्य, उत्कृष्ट और अजघन्य-अनुत्कृष्ट युक्तानन्त । अनन्तानन्त के दो प्रकार कहे हैं । यथा-जघन्य अनन्तानन्त और अजघन्य-अनुत्कृष्ट अनन्तानन्त । भगवन् ! जघन्य संख्यात कितने प्रमाण में होता है ? दो रूप प्रमाण जघन्य संख्यात है, उसके पश्चात् यावत् उत्कृष्ट संख्यात का स्थान प्राप्त न होने तक मध्यम संख्यात जानना । उत्कृष्ट संख्यात की प्ररूपणा इस प्रकार करूँगा-एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा और ३१६२२७ योजन, तीन कोश, १२८ धनुष एवं १३|| अंगुल से कुछ अधिक परिधि वाला कोई एक पल्य हो । पल्य को सर्षपों के दानों से भर दिया जाए । उन सर्षपों से द्वीप और समुद्रों का उद्धार-प्रमाण निकाला जाता है । अनुक्रम से एक द्वीप में और एक समुद्र में इस तरह प्रक्षेप करतेकरते जितने द्वीप-समुद्र उन सरसों के दानों से भर जाएँ, उनके समाप्त होने पर एक दाना शलाकापल्य में डाल दिया जाए । इस प्रकार के शलाका रुप पल्य में भरे सरसों के दानों से अकथनीय लोक भरे हुए हों तब भी उत्कृष्ट संख्या का स्थान प्राप्त नहीं होता है । इसके लिये कोई दृष्टान्त जैसे कोई एक मंच हो और वह आंवलों से पूरित हो, तदनन्तर एक आंवला डाला तो वह भी समा गया, दूसरा डाला तो वह भी समा गया, तीसरा डाला तो वह भी समा गया, इस प्रकार प्रक्षेप करते-करते अंत में एक आंवला ऐसा होगा कि जिसके प्रक्षेप से मंच परिपूर्ण भर जाता है। उसके बाद आंवला डाला जाए तो वह नहीं समाता है । इसी प्रकार बारंबार डाले गए सर्षपों से जब असंलप्य-बहुत से पल्य अंत में आमूलशिख पूरित हो जाए, उनमें एक सर्षप जितना भी स्थान न रहे तब उत्कृष्ट संख्या का स्थान प्राप्त होता है। इसी प्रकार उत्कृष्ट संख्यात संख्या में रूप (एक) का प्रक्षेप करने से जघन्य परीतासंख्यात होता है । तदनन्तर (परीतासंख्यात के) अजघन्य-अनुत्कृष्ट स्थान हैं, जहाँ तक उत्कृष्ट परीतासंख्यात स्थान प्राप्त नहीं होता है। जघन्य परीता-संख्यात राशि को जघन्य परीतासंख्यात राशि से परस्पर अभ्यास गुणित करके रूप (एक) न्यून करने पर उत्कृष्ट परीता-संख्यात का प्रमाण होता है । अथवा एक न्यून जघन्य युक्तासंख्यात उत्कृष्ट परीतासंख्यात का प्रमाण है। जघन्य युक्तासंख्यात का कितना प्रमाण है ? जघन्य परीतासंख्यात राशि का जघन्य परीतासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास करने पर प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तासंख्यात का प्रमाण होता है । अथवा उत्कृष्ट परीतासंख्यात के प्रमाण में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य युक्तासंख्यात होता है । आवलिका भी जघन्य युक्तासंख्यात तुल्य समय-प्रमाण वाली जानना । जघन्य युक्तासंख्यात से आगे जहाँ तक उत्कृष्ट युक्तासंख्यात प्राप्त न हो, तत्प्रमाण मध्यम युक्तासंख्यात है । जघन्य युक्ता-संख्यात राशि को आवलिका से परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त प्रमाण में से एक न्यून उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है । अथवा जघन्य असंख्यातसंख्यात राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है। जघन्य असंख्यातासंख्यात का क्या प्रमाण है ? जघन्य युक्तासंख्यात के साथ आवलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्यातासंख्यात है । अथवा उत्कृष्ट युक्तसंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है । तत्पश्चात् मध्यम स्थान होते हैं और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्राप्त होने से पूर्व तक जानना । जघन्य असंख्यातासंख्यात मात्र राशि का उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास-गुणा करने से प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर प्राप्त संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है । अथवा एक न्यून जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 60

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67