Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-३२२ समवतार क्या है ? समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे-नामसमवतार, स्थापनासमवतार, द्रव्यसमवतार, क्षेत्रसमवतार, कालसमवतार और भावसमवतार | नाम और स्थापना (समवतार) का वर्णन पूर्ववत् जानना । द्रव्यसमवतार दो प्रकार का कहा है-आगमद्रव्यसमवतार, नोआगमद्रव्यसमवतार । यावत् आगमद्रव्यसमवतार का तथा नोआगमद्रव्यसमवतार के भेद ज्ञायकशरीर और भव्यशरीर नोआगमद्रव्यसमवतार का स्वरूप पूर्ववत् जानना ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यसमवतार कितने प्रकार का है ? तीन प्रकार का है-आत्मसमवतार, परसमवतार, तदुभवसमवतार |आत्मसमवतार की अपेक्षा सभी द्रव्य आत्मभाव में रहती हैं, परमसमवतारापेक्षया कुंड में बेर की तरह परभाव में रहते हैं तथा तदुभयसमवतार से (सभी द्रव्य) घर में स्तम्भ अथवा घट में ग्रीवा की तरह परभाव तथा आत्मभाव-दोनों में रहते हैं । अथवा ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार दो प्रकार का है-आत्मसमवतार और तदुभयसमवतार | जैसे आत्मसमवतार से चतुष्षष्टिका आत्मभाव में रहती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा द्वात्रिंशिका में भी और अपने निजरूप में भी रहती है । द्वात्रिंशिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में और उभयसमवतार की अपेक्षा षोडशिका में भी रहती है और आत्मभाव में भी रहती है। षोडशिका आत्मसमवतार से आत्मभाव में समवतीर्ण होती है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा अष्ट-भागिका में भी तथा अपने निजरूप में भी रहती है । अष्टभागिका आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका में भी समवतरित होती है और अपने निज स्वरूप में भी समवतरित होती है । आत्मसमवतार की अपेक्षा चतुर्भागिका आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अर्धमानिका में समवतीर्ण होती है एवं आत्मभाव में भी । आत्मसमवतार से अर्धमानिका आत्मभाव में एवं तदुभयसमवतार की अपेक्षा मानिका में तथा आत्मभाव में भी समवतीर्ण होती है। यह ज्ञायक-शरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यसमवतार का वर्णन है । इस तरह नोआगमद्रव्यसमवतार और द्रव्यसमवतार की प्ररूपणा पूर्ण हुई। क्षेत्रसमवतार क्या है ? दो प्रकार से है । आत्मसमवतार, तदुभयसमवतार | आत्मसमवतार की अपेक्षा भरतक्षेत्र आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है । आत्मसमवतार की अपेक्षा जम्बूद्वीप आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा तिर्यक्लोक में भी समवतरित होता है और आत्म-भाव में भी । आत्मसमवतार से तिर्यक्लोक आत्मभाव में समवतीर्ण होता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा लोक में समवतरित होता है और आत्मभाव-निजरूप में भी। कालसमवतार दो प्रकार का है यथा-आत्मसमवतार, तदुभयसमवतार । जैसे-आत्मसमवतार की अपेक्षा समय आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा आवलिका में भी और आत्मभाव में भी रहता है। इसी प्रकार आनप्राण, स्तोक, लव, मुहूर्त, अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, यावत् पल्योपम, सागरोपम ये सभी आत्मसमवतार में आत्मभाव में और तदुभयसमवतार से अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी में भी और आत्मसमभाव में भी रहते हैं। अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है और तदुभयसमवतार की अपेक्षा पुद्गल परावर्तन में भी और आत्मभाव में भी रहता है । पुद्गलपरावर्तनकाल आत्मसमवतार की अपेक्षा निजरूप में रहता है और तदुभयसमवतार से अतीत और अनागत काल में भी एवं आत्मभाव में भी रहता है। अतीत-अनागत काल आत्मसमवतार की अपेक्षा आत्मभाव में रहता है, तदुभयसमवतार की अपेक्षा सर्वाद्धाकाल में भी रहता है और आत्मभाव में भी रहता है। भावसमवतार क्या है ? दो प्रकार का है। आत्मसमवतार और तभयसमवतार | आत्मसमवतार की अपेक्षा क्रोध निजस्वरूप में रहता है और तदुभयसमवतार से मान में और निजस्वरूप में भी समवतीर्ण होता है। इसी प्रकार मान, माया, लोभ, राग, मोहनीय और अष्टकर्म प्रकृतियाँ आत्मसमवतार से आत्मभाव में तथा तदुभयसमवतार से छह प्रकार के भावों में और आत्मभाव में भी रहती हैं । इसी प्रकार छह भाव जीव, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 62

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67