Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र - २, 'अनुयोगद्वार'
अनुमत, किम-क्या, कितने प्रकार का, किसको, कहाँ पर, किसमें, किस प्रकार कैसे, कितने काल तक, कितनी, अंतर, अविरह, भव, आकर्ष, स्पर्शना और निर्युक्ति । अर्थात् इन प्रश्नों का उत्तर उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम रूप है । सूत्र - ३४०-३४२
सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्त्यनुगम क्या है ? (जिस सूत्र की व्याख्या की जा रही है उस सूत्र को स्पर्श करने वाली निर्युक्ति के अनुगम को सूत्रस्पर्शिक-निर्युक्त्यनुगम कहते हैं ।) इस अनुगम में अस्खलित, अमिलित, अव्यत्याम्रेडित, प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्णघोष कंठोष्ठविप्रमुक्त तथा गुरुवाचनोपगत रूप से सूत्र का उच्चारण करना चाहिए । इस प्रकार से सूत्र का उच्चारण करने से ज्ञात होगा कि यह स्वसमयपद है, यह परसमयपद है, यह बंधपद है, यह मोक्षपद है, अथवा यह सामायिकपद है, यह नोसामायिकपद है ।
सूत्र का निर्दोष विधि से उच्चारण किये जाने पर कितने ही साधु भगवन्तों को कितनेक अर्थाधिकार अधिगत हो जाते हैं और किन्हीं - किन्हीं को कितनेक अर्थाधिकार अनधिगत रहते हैं । अत एव उन अनधिगत अर्थों का अधिगम कराने के लिए एक-एक पद की प्ररूपणा करूँगा । जिसकी विधी इस प्रकार है- संहिता, पदच्छेद, पदों का अर्थ, पदविग्रह, चालना और प्रसिद्धि । यह व्याख्या करने की विधि के छह प्रकार हैं ।
सूत्र - ३४३-३५०
क्या है ? मूल न सात हैं। नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढनय और एवंभूत-नय । जो अनेक प्रकारों से वस्तु के स्वरूप को जानता है, अनेक भावों से वस्तु का निर्णय करता है (वह नैगमनय है ।) शेष नयों के लक्षण कहूँगा - सुनो । सम्यक् प्रकार से गृहीत - यह संग्रहनय का वचन है । इस प्रकार से संक्षेप में कहा है । व्यवहारनय सर्व द्रव्यों के विषय में विनिश्चय करने के निमित्त प्रवृत्त होता है । ऋजुसूत्रनयविधि प्रत्युत्पन्नग्राही जानना । शब्दनय पदार्थ को विशेषतर मानता है । समभिरूढनय वस्तु का अन्यत्र संक्रमण अवस्तु मानता है। एवंभूतनय व्यंजन अर्थ एवं तदुभव को विशेष रूप से स्थापित करता है ।
-इन नयों द्वारा हेय और उपादेय अर्थ का ज्ञान प्राप्त करके तदनुकूल प्रवृत्ति करनी ही चाहिए । इस प्रकार का जो उपदेश है वही (ज्ञान) नय कहलाता है । इन सभी नयों की परस्पर विरुद्ध वक्तव्यता को सुनकर समस्त नयों से विशुद्ध सम्यक्त्व, चारित्र गुण में स्थित होने वाला साधु (मोक्षसाधक हो सकता है । इस प्रकार नयअधिकार की प्ररूपणा जानना ।
४५ अनुयोगद्वार - चूलिकासूत्र २ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
दीपरत्नसागर कृत् ” (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद*
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