Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्त-मुहूर्त काल रहता है । नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय एकभविक, बद्धायुष्क
और अभिमुखनामगोत्र तीनों प्रकार के शंखों को शंख मानते हैं । ऋजुसूत्रनय १. बद्धायुष्क और २. अभिमुखनामगोत्र, ये दो प्रकार के शंख स्वीकार करता है । तीनों शब्दनय मात्र अभिमुखनामगोत्र शंख को ही शंख मानते हैं।
औपम्यसंख्या क्या है ? उपमा देकर किसी वस्तु के निर्णय करने को औपम्यसंख्या कहते हैं । उसके चार प्रकार हैं । सद् वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना । सद् वस्तु को असद् वस्तु से उपमित करना । असद् वस्तु को सद् वस्तु की उपमा देना । असद् वस्तु को असद् वस्तु की उपमा देना । इनमें से जो सद् वस्तु को सद् वस्तु से उपमित किया जाता है, वह इस प्रकार है-सद्रूप अरिहंत भगवंतों के प्रशस्त वक्षःस्थल को सद्रूप श्रेष्ठ नगरों के सत् कपाटों की उपमा देना, जैसेसूत्र-३१२
सभी चौबीस जिन-तीर्थंकर प्रधान-उत्तम नगर के कपाटों के समान वक्षःस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित के समान स्वर और श्रीवत्स से अंकित वक्षःस्थल वाले होते हैं। सूत्र-३१३
विद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना । जैसे नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की विद्यमान आयु के प्रमाण को अविद्यमान पल्योपम और सागरोपम द्वारा बतलाना । सूत्र-३१४-३१६
___ अविद्यमान को विद्यमान सद्वस्तु से उपमित करने को असत्-सत् औपम्यसंख्या कहते हैं । सर्व प्रकार से जीर्ण, डंठल से टूटे, वृक्ष से नीचे गिरे हुए, निस्सार और दुःखित ऐसे पत्ते ने वसंत समय प्राप्त नवीन पत्ते से कहाजीर्ण पीले पत्ते ने नवोद्गत किसलयों कहा-इस समय जैसे तुम हो, हम भी पहले वैसे ही थे तथा इस समय जैसे हम हो रहे हैं, वैसे ही आगे चलकर तुम भी हो जाओगे । यहाँ जो जीर्ण पत्तों और किसलयों के वार्तालाप का उल्लेख किया गया है, वह न तो कभी हुआ है, न होता है और न होगा, किन्तु भव्य जनों के प्रतिबोध के लिए उपमा दी गई है। सूत्र-३१७
___ अविद्यमान पदार्थ को अविद्यमान पदार्थ से उपमित करना असद्-असद्प औपम्यसंख्या है। जैसा-खर विषाण है वैसा ही शश विषाण है और जैसा शशविषाण है वैसा ही खरविषाण है।
परिमाणसंख्या क्या है ? दो प्रकार की है । जैसे-कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या और दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या । कालिक श्रुतपरिमाणसंख्या अनेक प्रकार की है । पर्यव (पर्याय) संख्या, अक्षरसंख्या, संघातसंख्या, पदसंख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या, लोकसंख्या, वेढ (वेष्टक) संख्या, नियुक्तिसंख्या, अनुयोगद्वारसंख्या, उद्देशसंख्या, अध्ययनसंख्या, श्रुतस्कन्धसंख्या, अंग-संख्या आदि कालिकश्रुतपरिमाणसंख्या है।
दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या के अनेक प्रकार हैं | यथा-पर्वसंख्या यावत् अनुयोग-द्वारसंख्या, प्राभृतसंख्या, प्राभृतिकासंख्या, प्राभृतप्राभृतिकासंख्या, वस्तुसंख्या और पूर्वसंख्या । इस प्रकार से दृष्टिवादश्रुतपरिमाणसंख्या का स्वरूप जानना।
ज्ञानसंख्या क्या है ? जो जिसको जानता है उसे ज्ञानसंख्या कहते हैं । जैसे कि-शब्द को जानने वाला शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ, निमित्त को जानने वाला नैमित्तिक, काल को जाननेवाला कालज्ञ और वैद्यक को जाननेवाला वैद्य । ये इतने हैं, इस रूप में गिनती करने को गणनासंख्या कहते हैं । 'एक', गणना नहीं कहलाता है इसलिए दो से गणना प्रारम्भ होती है । वह गणनासंख्या संख्या, असंख्यात और अनन्त, तीन प्रकार की जानना।
संख्यात क्या है ? तीन प्रकार का है । जघन्य संख्यात, उत्कृष्ट संख्यात और अजघन्य-अनुत्कृष्ट संख्यात | असंख्यात के तीन प्रकार हैं । जैसे-परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यात । परीतासंख्यात तीन
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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