Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार'
अनुमान क्या है? तीन प्रकार का है-पूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् । पूर्ववत्-अनुमान किसे कहते हैं? पूर्व में देखे गये लक्षण से जो निश्चय किया जाए उसे पूर्ववत् कहते हैं । यथासूत्र-३०२-३०५
माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है । जैसे-देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह पूर्ववत्-अनुमान है।
शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? पाँच प्रकार का है । कार्येण, कारणेन, गुणेण, अवयवेन और आश्रयेण । कार्य से उत्पन्न होनेवाले शेषवत्-अनुमान क्या है ? शंख के शब्द को सुनकर शंख का अनुमान करना, भेरी के शब्द से भेरी का, बैल के रंभाने से बैल का, केकारव सुनकर मोर का, हिनहिनाना सुनकर घोड़े का, गुलगुलाहट सुनकर हाथी का और घनघनाहट सुनकर रथ का अनुमान करना । यह कार्यलिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान है । कारणरूप लिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान इस प्रकार है-तंतु पट के कारण हैं, किन्तु पट तंतु का कारण नहीं है, वीरणा-तृण कट के कारण हैं, लेकिन कट वीरणा का कारण नहीं है, मिट्टी का पिंड घड़े का कारण है किन्तु घड़ा मिट्टी का कारण नहीं है । निकष-कसौटी से स्वर्ण का, गंध से पुष्प का, रस से नमक का, आस्वाद से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का अनुमान करना गुणनिष्पन्न शेषवत्-अनुमान है । सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट का, दाँत से हाथी का, दाढ़ से वराह का, पिच्छ से मयूर का, खुर से घोड़े का, नखों से व्याघ्र का, बालों के गुच्छे से चमरी गाय का, द्विपद से मनुष्य का, चतुष्पद से गाय आदि का, बहुपदों से गोमिका आदि का, केसरसटा से सिंह का, ककुद से वृषभ का, चूड़ी सहित बाहु से महिला का अनुमान करना । बद्धपरिकरता से योद्धा का, वेष से महिला का, एक दाने के पकने से द्रोण-पाक का और एक गाथा से कवि का ज्ञान होना । यह अवयवलिंगजन्य शेषवत्अनुमान है । धूम से अग्नि का, बकपंक्ति से पानी का, अभ्रविकार से वृष्टि का और शील सदाचार से कुलपुत्र का तथा-शरीर की चेष्टाओं से, भाषण करने से और नेत्र तथा मुख के विकार से अन्तर्गत मन का ज्ञान होना । यह आश्रयजन्य शेषवत्-अनुमान है।
दृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान क्या है ? दो प्रकार का है । सामान्यदृष्ट, विशेषदृष्ट । सामान्यदृष्ट अनुमान का स्वरूप इस प्रकार जानना-जैसा एक पुरुष होता है, वैसे ही अनेक पुरुष होते हैं । जैसे अनेक पुरुष होते हैं, वैसा ही एक पुरुष होता है । जैसा एक कार्षापण होता है वैसे ही अनेक कार्षापण होते हैं, जैसे अनेक कार्षापण होते हैं, वैसा ही एक कार्षापण होता है । विशेषदृष्ट अनुमान का स्वरूप यह है-जैसे कोई एक पुरुष अनेक पुरुषों के बीच में किसी पूर्वदृष्ट पुरुष को पहचान लेता है कि यह वह पुरुष है । इसी प्रकार अनेक कार्षापणों के बीचमें से पूर्व में देखे हुए कार्षापण को पहिचान लेता है कि यह वही कार्षापण है। उसका विषय संक्षेप से तीन प्रकार का है। अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागत कालग्रहण ।
अतीतकालग्रहण अनुमान क्या है ? वनों में ऊगी हुई घास, धान्यों से परिपूर्ण पृथ्वी, कुंड, सरोवर, नदी और बड़े-बड़े तालाबों को जल से संपूरित देखकर यह अनुमान करना कि यहाँ अच्छी वृष्टि हुई है । यह अतीतकालग्रहणसाधर्म्यवत्-अनुमान है । गोचरी गये हुए साधु को गृहस्थों से विशेष प्रचुर आहार-पानी प्राप्त करते हुए देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ सुभिक्ष हैं । यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है। अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? सूत्र - ३०६
आकाश की निर्मलता, पर्वतों का काला दिखाई देना, बिजली सहित मेघों की गर्जना, अनुकूल पवन और संध्या की गाढ़ लालिमा । तथासूत्र - ३०७
वारुण, महेन्द्र अथवा किसी अन्य प्रशस्त उत्पात को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वृष्टि होगी । इसे मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद"
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