Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 52
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' संख्या सामान्य बद्ध और मुक्त औदारिकशरीरों जितनी जानना । पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैंबद्ध और मुक्त । इनमें से बद्ध तो इनके नहीं होते हैं और मुक्त के लिए औदारिकशरीरों के समान जानना । आहारकशरीरों को भी इस प्रकार जानना । इनके तैजसकार्मण शरीरों की प्ररूपणा औदारिकशरीरों के समान समझना । पृथ्वीकायिकों के शरीरों के समान अप्कायिक और तेजस् कायिक जीवों के शरीरों को जानना । वायुकायिक जीवों के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान जानना । वायुकायिक जीवों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । उनमें से बद्ध असंख्यात है । यदि समय-समय में एक-एक शरीर का अपहरण किया जाए तो (क्षेत्र) पल्योपम के असंख्यातवें भाग में जितने प्रदेश हैं, उतने काल में पूर्णतः अपहृत हों । किन्तु उनका किसी ने कभी अपहरण किया नहीं है और मुक्त औघित औदारिक के बराबर हैं और आहारकशरीर पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर के समान कहना । तैजस, कार्मण, शरीरों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिक जीवों के तैजस और कार्मण शरीरों जैसे समझना । वनस्पतिकायिक जीवों के औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीरों को पृथ्वीकायिक जीवों के औदारिकादि शरीरो समान समझना । वनस्पतिकायिक जीवों के तैजस-कार्मण शरीर औधिक तैजस-कार्मण शरीरों के समान है द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर कितने ? गौतम ! वे दो प्रकार के हैं । बद्ध और मुक्त । बद्ध औदारिकशरीर असंख्यात हैं । कालतः असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । अर्थात् असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों के समय जितने हैं । क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात श्रेणियों के प्रदेशों की राशिप्रमाण हैं । उन श्रेणियों की विष्कम्भभसूचि असंख्यात कोटाकोटि योजनप्रमाण है । इतने प्रमाणवाली विष्कम्भसूचि असंख्यात श्रेणियों के वर्गमूल रूप है । द्वीन्द्रियों के बद्ध औदारिकशरीरों द्वारा प्रतर अपहृत किया जाए तो काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणि-अवसर्पिणि कालों में अपहृत होता है तथा क्षेत्रतः अंगुल मात्र प्रतर और आवलिका के असंख्यातवें भाग-प्रतिभाग (प्रमाणांश) से अपहृत होता है। औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान मुक्त औदारिकशरीरों को भी जानना । द्वीन्द्रियों के बद्धवैक्रिय-आहारकशरीर नहीं होते हैं और मुक्त के विषय में औधिक के समान जानना । द्वीन्द्रियों के शरीरों के समान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों के भी औदारिकशरीर इसी प्रकार जानना। पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! वे दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं जिनका कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से अपहरण होता है और क्षेत्रतः यावत् विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल के असंख्यातवें भाग में वर्तमान श्रेणियों जितनी है । मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य औदारिकशरीरों के प्रमाण तथा इनके आहारकशरीरों का प्रमाण द्वीन्द्रियों के आहारकशरीरों के बराबर है । तैजस-कार्मण शरीरों का परिमाण औदारिकशरीरों के प्रमाणवत् है। भदन्त ! मनुष्यों के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! वे दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । बद्ध तो स्यात् असंख्यात और स्यात् संख्यात और स्यात् असंख्यात होत हैं । जघन्य पद में संख्यात कोटाकोटि होते हैं अर्थात् उनतीस अंकप्रमाण होते हैं । ये उनतीस अंक यमल पद के ऊपर तथा चार यमल पद से नीचे हैं, अथवा पंचमवर्ग से गुणित छठे वर्गप्रमाण होते हैं, अथवा छियानवे छेदनकदायी राशि जितनी संख्या प्रमाण हैं । उत्कृष्ट पद में वे शरीर असंख्यात हैं । जो कालतः असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं और क्षेत्र की अपेक्षा एक रूप प्रक्षिप्त किये जाने पर मनुष्यों से श्रेणी अपहृत होती है । कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से अपहार होता है और क्षेत्रतः तीसरे मूलवर्ग से गुणित अंगुल के प्रथम वर्गमूल प्रमाण होते हैं । उनके मुक्तऔदारिकशरीर औधिक मुक्तऔदारिकशरीरों के समान जानना । मनुष्यों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । बद्ध संख्यात हैं जो समय-समय में अपहृत किये जाने पर संख्यात काल में अपहृत होते हैं किन्तु अपहृत नहीं किये गये हैं । मुक्तवैक्रियशरीर मुक्त औधिक मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 52

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