Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 27
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' पृथ्वी-कायिक, यावत् वनस्पतिकायिक, त्रसकायिक, क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी, कृष्णलेश्यी, नील-कापोत-तेज-पद्म-शुक्ललेश्यी, मिथ्यादृष्टि, अविरत, अज्ञानी, आहारक, छद्मस्थ, सयोगी, संसारस्थ, असिद्ध | अजीवोदयनिष्पन्न औदयिकभाव क्या है ? चौदह प्रकार का है । औदारिकशरीर, औदारिकशरीर के व्यापार से परिणामित गृहीत द्रव्य, वैक्रियशरीर, वैक्रियशरीर के प्रयोग से परिणामित द्रव्य, इसी प्रकार, आहारकशरीर और आहारकशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य, तैजसशरीर और तैजसशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य, कार्मणशरीर और कार्मणशरीर के व्यापार से परिणामित द्रव्य तथा पाँचों शरीरों के व्यापार से परिणामित वर्ण, गंध, रस, स्पर्श द्रव्य । औपशमिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। उपशम और उपशमनिष्पन्न । उपशम क्या है ? मोहनीयकर्म के उपशम से होने वाले भाव उपशम भाव हैं । उपशमनिष्पन्न औपशमिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार हैं । उपशांतक्रोध यावत् उपशांतलोभ, उपशांतराग, उपशांतद्वेष, उपशांतदर्शनमोहनीय, उपशांतचारित्रमोहनीय, उपशांतमोहनीय, औपशमिक सम्यक्त्वलब्धि, औपशमिक चारित्रलब्धि, उपशांतकषायछद्मस्थवीतराग आदि उपशमनिष्पन्न औपशमिकभाव हैं। क्षायिकभाव क्या है ? दो प्रकार का कहा गया है । क्षय और क्षयनिष्पन्न । क्षय-क्षायिकभाव किसे कहते हैं? आठ कर्मप्रकृतियों के क्षय से होने वाला भाव क्षायिक है । क्षयनिष्पन्न क्षायिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार का है। यथा-उत्पन्नज्ञान-दर्शनधारी, अर्हत्, जिन, केवली, क्षीणआभिनिबोधिकज्ञानावरणवाला, क्षीणश्रुतज्ञानावरणवाला, क्षीणअवधिज्ञानावरणवाला, क्षीणनःपर्यवज्ञानावरण वाला, क्षीणकेवलज्ञानावरण वाला, अविद्यमान आवरण वाला, निरावरण वाला, क्षीणवरण वाला, ज्ञानावरणीयकर्मविप्रमुक्त केवलदर्शी, सर्वदर्शी, क्षीणनिद्र, क्षीणनिद्रानिद्र, क्षीणप्रचल, क्षीणप्रचलाप्रचल, क्षीणस्त्यानगृद्धि, क्षीणचक्षुदर्शनावरणवाला, क्षीणअचक्षुदर्शनावरणवाला, क्षीणअवधिदर्शनावरणवाला, क्षीणकेवलदर्शनावरणवाला, अनावरण, निरावरण, क्षीणावरण, दर्शनावरणीय कर्मविप्रमुक्त, क्षीणसातावेदनीय, क्षीणअसातावेदनीय, अवेदन, निर्वेदन, क्षीणवेदन, शुभाशुभ वेदनीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणक्रोध यावत् क्षीणलोभ, क्षीणराग, क्षीणद्वेष क्षीणदर्शनमोहनीय, क्षीणचारित्रमोहनीय, अमोह, निर्मोह, क्षीणमोह, मोहनीयकर्मविप्रमुक्त, क्षीणनरकायुष्क, क्षीणतिर्यंचायुष्क, क्षीणमनुष्यायुष्क, क्षीणदेवायुष्क, अनायुष्क, निरायुष्क, क्षीणायुष्क, आयुकर्मविप्रमुक्त, गति-जाति-शरीर-अंगोपांग-बंधन-संघातक-संहनन-अनेकशरीरवृन्दसंघातविप्रमुक्त, क्षीण-शुभनाम, क्षीण-सुभगनाम, अनाम, निर्नाम, क्षीणनाम, शुभाशुभ नामकर्मविप्रमुक्त, क्षीण-उच्चगोत्र, क्षीण-नीचगोत्र, अगोत्र, निर्गोत्र, क्षीणगोत्र, शुभाशुभगोत्रकर्मविप्रमुक्त, क्षीण-दानान्तराय, क्षीणलाभान्तराय, क्षीण-भोगान्तराय, क्षीण-उपभोगान्तराय, क्षीण-वीर्यान्तराय, अनन्तराय, निरंतराय, क्षीणान्तराय, अंतरायकर्मविप्रमुक्त, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त, अंतकृत, सर्वदुःख प्रहीण । यह क्षयनिष्पन्न क्षायिकभाव का स्वरूप है। इस प्रकार से क्षायिकभाव की वक्तव्यता जानना । क्षायोपशमिकभाव क्या है ? दो प्रकार का है। क्षयोपशम और क्षयोपशमनिष्पन्न । क्षयोपशम क्या है ? ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों के क्षयोपशम को क्षयोपशमभाव कहते हैं। क्षयोपशमनिष्पन्न क्षायोप-शमिकभाव क्या है ? अनेक प्रकार का है । क्षायोपशमिकी आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि यावत् क्षायोपशमिकी मनःपर्यायज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिकी मति-अज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिकी श्रुत-अज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिकी विभंगज्ञानलब्धि, क्षायोपशमिकी चक्षुदर्शनलब्धि, इसी प्रकार अचक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि, सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि, सम्यग्मिथ्यादर्शनलब्धि, क्षायोपशमिकी सामायिकचारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनालब्धि, परिहारविशुद्धिलब्धि, सूक्ष्मसंपरायिकलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, क्षायोपशमिकी दान-लाभभोग-उपभोग-लब्धि, क्षायोपशमिकी वीर्यलब्धि, पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपंडितवीर्य-लब्धि, क्षायोपशमिकी श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् क्षायोपशमिकी स्पर्शनेन्द्रियलब्धि, क्षायोपशमिक आचारांगधारी, सूत्रकृतांगधारी, स्थानांगधारी, समवायांगधारी, व्याख्याप्रज्ञप्तिधारी, ज्ञाताधर्मकथांगधारी, उपासकदशांगधारी, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 27

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