Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 28
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' अन्तकृद्दशांगधारी, अनुत्तरोपपा-तिकदशांगधारी, प्रश्नव्याकरणधारी, क्षायोपशमिक विपाकश्रुतधारी, क्षायोपशमिक दृष्टिवादधारी, क्षायोपशमिक नवपूर्वधारी यावत् चौदहपूर्वधारी, क्षायोपशमिक गणी, क्षायोपशमिक वाचक । ये सब क्षयोपशमनिष्पन्नभाव हैं। पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ? दो प्रकार हैं । सादिपारिणामिक, अनादिपारिणामिक । सादिपारिणामिकभाव क्या है? अनेक प्रकार हैं। सूत्र-१६२ जीर्ण सुरा, जीर्ण गुड़, जीर्ण घी, जीर्ण तंदुल, अभ्र, अभ्रवृक्ष, संध्या, गंधर्वनगर । सूत्र - १६३ उल्कापात, दिग्दाह, मेघगर्जना, विद्युत, निर्घात्, यूपक, यक्षादिप्त, धूमिका, महिका, रजोद्घात, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, चन्द्रपरिवेष, सूर्यपरिवेष, प्रतिचन्द्र, प्रतिसूर्य, इन्द्रधनुष, उदकमत्स्य, कपिहसित, अमोघ वर्ष, वर्षधर पर्वत, ग्राम, नगर, घर, पर्वत, पातालकलश, भवन, नरक, रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा, सौधर्म, ईशान, यावत् आनत, प्राणत, आरण, अच्युत, ग्रैवेयक, अनुत्तरोपपातिक देवविमान, ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी, परमाणुपुद्गल, द्विप्रदेशिक स्कन्ध से लेकर अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध आसादिपारिणामिकभाव रूप हैं । अनादिपारिणामिकभाव क्या है ? धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय, लोक, अलोक, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, ये अनादि पारिणामिक हैं। सान्निपातिकभाव क्या है ? औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक, इन पाँचों भावों के द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग, चतुःसंयोग और पंचसंयोग से जो भाव निष्पन्न होते हैं वे सब सान्निपातिकभाव नाम हैं । उनमें से द्विकसंयोगज दस, त्रिकसंयोगज दस, चतुःसंयोगज पाँच और पंचसंयोगज एक भाव हैं । इस प्रकार सब मिलाकर ये छब्बीस सान्निपातिकभाव हैं । दो-दो के संयोग से निष्पन्न दस भंगों के नाम इस प्रकार हैंऔदयिक-औपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिक-क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिकक्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औदयिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक-क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक-क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव, औपशमिक-पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव तथा क्षायोपशमिकपारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव । भगवन् ! औदायिक-औपशमिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्यगति और औपशमिक-भाव में उपशांतकषाय को ग्रहण करने रूप औदयिक-औपशमिकभाव हैं । औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व का ग्रहण औदयिकक्षायिकभाव हैं । औदयिकभाव में मनुष्यगति और क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियाँ जानना । यह औदयिक-क्षायोपशमिकभाव का स्वरूप है। औदयिक-पारिणामिकभाव के संयोग से निष्पन्न भंग क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्यगति और पारिणामिकभाव में जीवत्व को ग्रहण करना औदयिक-पारिणामिकभाव का स्वरूप है । उपशांतकषाय और क्षायिक सम्यक्त्व यह औपशमिक-क्षायिकसंयोगज भाव का स्वरूप है । औपशमिकभाव में उपशांतकषाय और क्षयोपशमनिष्पन्न में इन्द्रियाँ यह औपशमिक-क्षयोपशमनिष्पन्नभाव का स्वरूप है । औपशमिकभाव में उपशांतकषाय और पारिणामिकभाव में जीवत्व यह औपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है । क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायोपशमिक इन्द्रियाँ यह क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप जानना । क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व और पारिणामिकभाव में जीवत्व का ग्रहण क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव का स्वरूप है । क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियाँ और पारिणामिकभाव में जीवत्व को ग्रहण किया जाए तो यह क्षायोपशमिकपारिणामिकभाव का स्वरूप है। सान्निपातिकभाव में त्रिकसंयोगज दस भंग हैं- औदयिकऔपशमिक-क्षायिकनिष्पन्नभाव, औदयिकऔपशमिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव, औदयिकऔपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, औदयिक-क्षायिक-क्षायोप मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 28

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