Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 30
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' पंचसंयोगज सान्निपातिकभाव का एक भंग इस प्रकार है-औदयिक-औपशमिकक्षायिक-क्षायोपशमिकपारिणामिक-निष्पन्नभाव | औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिक भाव क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियाँ और पारिणामि-कभाव में जीवत्व, यह औदयिक-औपशमिक-क्षायिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । इस प्रकार से सान्निपातिकभाव और हाथ ही षड्नाम का वर्ण समाप्त हुआ। सूत्र-१६४-१६५ सप्तनाम क्या है ? सात प्रकार के स्वर रूप है । -षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, ये सात स्वर जानना। सूत्र-१६६-१६८ इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं । जिह्वा के अग्रभाग से षड्जस्वर का, वक्षस्थल से ऋषभस्वर, कंठ से गांधार-स्वर, जिह्वा के मध्यभाग से मध्यमस्वर, नासिका से पंचमस्वर का, दंतोष्ठ-संयोग से धैवतस्वर का और मूर्धा से निषाद स्वर का उच्चारण करना चाहिए। सूत्र-१६९-१७१ जीवनिश्रित-सप्तस्वरों का स्वरूप इस प्रकार है-मयूर षड्जस्वर में, कुक्कुट ऋषभस्वर, हंस गांधारस्वर में, गवेलक मध्यमस्वर में, कोयल पुष्पोत्पत्तिकाल में पंचमस्वर में, सारस और क्रौंच पक्षी धैवतस्वर में तथा-हाथी निषाद स्वर में बोलता है। सूत्र - १७२-१७४ अजीवनिश्रित-मृदंग से षड्जस्वर, गोमुखी से ऋषभस्वर, शंख से गांधारस्वर, झालर से मध्यमस्वर, चार चरणों पर स्थित गोधिका से पंचमस्वर, आडंबर से धैवतस्वर तथा महाभेरी से निषादस्वर निकलता है। सूत्र - १७५-१८२ इन सात स्वरों के सात स्वरलक्षण हैं । षड्जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति-आजीविका प्राप्त करता है । उसका प्रयत्न व्यर्थ नहीं जाता है । उसे गोधन, पुत्र-पौत्रादि और सन्मित्रों का संयोग मिलता है । वह स्त्रियों का प्रिय होता है । ऋषभस्वरवाला मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है । सेनापतित्व, धन-धान्य, वस्त्र, गंध-सुगंधित पदार्थ, आभूषणअलंकार, स्त्री, शयनासन आदि भोगसाधनों को प्राप्त करता है । गांधारस्वर वाला श्रेष्ठ आजीविका प्राप्त करता है। वादित्रवृत्ति वाला होता है, कलाविदों में श्रेष्ठ है। कवि होता है । प्राज्ञ-चतुर तथा अनेक शास्त्रों में पारंगत होता है । मध्यमस्वरभाषी सुखजीवी होते हैं । रुचि के अनुरूप खाते-पीते और जीते हैं तथा दूसरों को भी खिलाते-पिलाते तथा दान देते हैं । पंचमस्वरवाला व्यक्ति भूपति, शूरवीर, संग्राहक और अनेक गुणों का नायक होता है । धैवतस्वरवाला पुरुष कलहप्रिय, शाकुनिक, वागुरिक, शौकरिक और मत्स्यबंधक होता है। निषादस्वर वाला पुरुष चांडाल, वधिक, मुक्केबाज, चोर और इसी प्रकार के दूसरे-दूसरे पाप करनेवाला होता है। सूत्र-१८३-१८९ इन सात स्वरों के तीन ग्राम हैं । षड्जग्राम, मध्यमग्राम, गांधारग्राम । षड्जग्राम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । मंगी, कौरवीया, हरित, रजनी, सारकान्ता, सारसी और शुद्धषड्ज । मध्यमग्राम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । उतरमंदा, रजनी, उत्तरा, उत्तरायता, अश्वक्रान्ता, सौवीरा, अभिरुद्गता । गांधारग्राम की सात मूर्च्छनाएँ हैं । नन्दी, क्षुद्रिका, पूरिमा, शुद्धगांधारा, उत्तरगांधारा, सुष्ठुतर-आयामा और उत्तरायतासूत्र - १९०-१९२ -सप्तस्वर कहाँ से-उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्वासकाल का समयप्रमाण कितना मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 30

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