Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' विभक्ति होती है। सूत्र - २०८-२१२
निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-वह, यह अथवा मैं । उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है। -जैसे इसको कहो, उसको करो आदि । करण में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके ओर मेरे द्वारा किया गया । संप्रदान, नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है । अपादान में पंचमी होती है । जैसे-यहाँ से दूर करो अथवा इससे ले लो । स्वस्वामीसम्बन्ध बतलाने में षष्ठी विभक्ति होती है । जैसेउसकी अथवा इसकी यह वस्तु है । आधार, काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे (वह) इसमें है। आमंत्रण अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है । जैसे-हे युवन् ! सूत्र-२१३-२१४
नवनाम क्या है ? काव्य के नौ रस नवनाम कहलाते हैं । जिनके नाम हैं-वीररस, शृंगाररस, अद्भुतरस, रौद्ररस, वीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, कारुण्यरस और प्रशांतरस । सूत्र - २१५-२१६
इन नव रसों में १. परित्याग करने में गर्व या पश्चात्ताप न होने, २. तपश्चरण में धैर्य और ३. शत्रुओं का विनाश करने में पराक्रम होने रूप लक्षण वाला वीररस है । राज्य-वैभव का परित्याग करके जो दीक्षित हुआ और दीक्षित होकर काम-क्रोध आदि रूप महाशत्रुपक्ष का जिसने विघात किया, वही निश्चय से महावीर है। सूत्र- २१७-२१८
शंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य-लीला और रमण ये सब शृंगाररस के लक्षण हैं । कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा क्षुद्र घंटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है। सूत्र - २१९-२२०
पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी-आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्भुतरस है । हर्ष और विषाद की उत्पत्ति अद्भुतरस का लक्षण है । इस जीवलोकमें इससे अधिक अद्भुत और क्या हो सकता है कि जिनवचन द्वारा त्रिकाल सम्बन्धी समस्त पदार्थ जान लिये जाते हैं। सूत्र - २२१-२२२
भयोत्पादक रूप, शब्द अथवा अंधकार के चिन्तन, कथा, दर्शन आदि से रौद्ररस उत्पन्न होता है और संमोह, संभ्रम, विषाद एवं मरण उसके लक्षण हैं । भृकुटियों से तेरा मुख विकराल बन गया है, तेरे दाँत होठों को चबा रहे हैं, तेरा शरीर खून से लथपथ हो रहा है, तेरे मुख से भयानक शब्द निकल रहे हैं, जिससे तू राक्षस जैसा हो गया है और पशुओं की हत्या कर रहा है। इसलिए अतिशय रौद्ररूपधारी तू साक्षात रौद्ररस है। सूत्र- २२३-२२४
विनय करने योग्य माता-पिता आदि गुरुजनों का विनयन करने से, गुप्त रहस्यों को प्रकट करने से तथा गुरुपत्नी आदि के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने से वीडनकरस उत्पन्न होता है । लज्जा और शंका उत्पन्न होना, इस रस के लक्षण हैं । इस लौकिक व्यवहार से अधिक लज्जास्पद अन्य बात क्या हो सकती है-मैं तो इससे बहुत लजाती हूँ कि वर-वधू का प्रथम समागम होने पर सास आदि वधू द्वारा पहने वस्त्र की प्रशंसा करते हैं। सूत्र - २२५-२२६
अशुचि, शव, मृत शरीर, दुर्दर्शन को बारंबार देखने रूप अभ्यास से या उसकी गंध से बीभत्सरस उत्पन्न होता है । निर्वेद और अविहिंसा बीभत्सरस के लक्षण हैं । अपवित्र मल से भरे हुए झरनों से व्याप्त और सदा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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