Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-२९०-२९१
संमूर्छिम तिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरचतुष्पद संमूर्छिमों की ८४००० वर्ष, उरपरिसॉं की ५३००० वर्ष, भुजपरिसॉं की ४२००० वर्ष और पक्षी की ७२००० वर्ष की है । गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यंचों में अनुक्रम से जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि वर्ष, स्थलचरों की तीन पल्योपम, उरपरिसॉं और भुज-परिसॉं की पूर्वकोटि वर्ष और खेचरों की पल्योपम के असंख्यातवें भाग की है। सूत्र - २९२
मनुष्यों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य अन्तर्मुहर्त की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। संमूर्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है । गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है । अपर्याप्तक गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति भी अन्तर्मुहुर्त ही जानना । पर्याप्तक गर्भव्यु-त्क्रान्तिक मनुष्यों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त्त न्यून तीन पल्योपम प्रमाण है।
वाणव्यंतर देवों की स्थिति कितने काल की है ? जघन्य स्थिति १०००० वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम है । वाणव्यंतरों की देवियों की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट अर्धपल्योपम है।
ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य कुछ अधिक पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम है । ज्योतिष्क देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग प्रमाण और उत्कृष्ट ५०००० वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की होती है।
चंद्रविमानों के देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है । चंद्रविमानों की देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट ५०००० वर्ष अधिक अर्धपल्योपम है । सूर्यविमानों के देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थांश और उत्कृष्ट स्थिति १००० वर्ष अधिक एक पल्योपम है । सूर्यविमानों की देवियों की जघन्य स्थिति पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट पाँचसौ वर्ष अधिक अर्धपल्योपम है।
ग्रहविमानों के देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट एक पल्योपम की है । ग्रहविमानों की देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट अर्धपल्योपम है । नक्षत्रविमानों के देवों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट अर्धपल्योपम है । नक्षत्रविमानों की देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट साधिक पल्योपम का चतुर्थ भाग है । ताराविमानों के देवों की स्थिति कुछ अधिक पल्योपम का अष्टमांश भाग जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम का चतुर्थ भाग है । ताराविमानों की देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट साधिक पल्योपम का आठवाँ भाग है।
वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही है ? गोतम ! वैमानिक देवों की स्थिति जघन्य एक पल्य की और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है । वैमानिक देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्य की और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम है।
सौधर्मकल्प के देवों की स्थिति जघन्य एक पल्योपम की और उत्कृष्ट दो सागरोपम है । सौधर्मकल्प में (परिगृहीता) देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट सात पल्योपम की है। अपरिगृहीता देवियों की स्थिति जघन्य पल्योपम की और उत्कृष्ट पचास पल्योपम की है।
ईशानकल्प के देवों की जघन्य स्थिति साधिक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति साधिक दो सागरोपम की है । ईशानकल्प की (परिगृहीता) देवियों की स्थिति जघन्य साधिक पल्योपम और उत्कृष्ट नौ पल्योपम है । अपरिगृहीता देवियों की स्थिति ? जघन्य कुछ अधिक पल्योपम और उत्कृष्ट पचपन पल्योपम है।
सनत्कुमारकल्प के देवों की स्थिति कितनी होती है ? गौतम ! जघन्य दो सागरोपम की और उत्कृष्टतः सात सागरोपम की है । माहेन्द्रकल्प में देवों की स्थिति जघन्य साधिक दो सागरोपम और उत्कृष्ट कुछ अधिक सात
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद'
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