Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 38
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-२५९ अंगुल क्या है ? अंगुल तीन प्रकार का है-आत्मांगुल, उत्सेधांगुल और प्रमाणांगुल । आत्मांगुल किसे कहते हैं ? जिस काल में जो मनुष्य होते हैं उनके अंगुल आत्मांगुल हैं । उनके अपने-अपने अंगुल से बारह अंगुल का एक मुख होता है । नौ मुख प्रमाण वाला पुरुष प्रमाणयुक्त माना जाता है, द्रोणिक पुरुष मानयुक्त माना जाता है और अर्धभारप्रमाण तौल वाला पुरुष उन्मान युक्त होता है। सूत्र - २६०-२६२ जो पुरुष मान-उन्मान और प्रमाण से संपन्न होते हैं तथा लक्षणों एवं व्यंजनो से और मानवीय गुणों से युक्त होते हैं एवं उत्तम कुलों में उत्पन्न होते हैं, ऐसे पुरुषों को उत्तम पुरुष समझना । ये उत्तम पुरुष अपने अंगुल से १०८ अंगुल प्रमाण ऊंचे होते हैं । अधम पुरुष ९६ अंगुल और मध्यम पुरुष १०४ अंगुल ऊंचे होते हैं । ये हीन ऊंचाई वाले अथवा अधिक ऊंचाई वाले (मध्यम पुरुष) जनोपादेय एवं प्रशंसनीय स्वर से, सत्त्व से तथा सार से हीन और उत्तम पुरुषों के दास होते हैं। सूत्र - २६३ ___ इस आत्मांगुल से छह अंगुल का एक पाद होता है । दो पाद की एक वितस्ति, दो वितस्ति की एक रत्नि और दो रत्नि की एक कुक्षि होती है । दो कुक्षि का एक दंड, धनुष, युग, नालिका अक्ष और मूसल जानना । दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है। आत्मांगुलप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से कुआ, तडाग, द्रह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सर, सरपंक्ति, सर-सरपंक्ति, विलपंक्ति, आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखंड, वनराजि, देवकुल, सभा, प्रपा, स्तूप, खातिका, परिखा, प्राकार, अट्टालक, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, शरण, लयन, आपण, शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ, पथ, शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्लि, थिल्लि, शिबिका, स्यंदमानिका, लोही, लोहकटाह, कुडछी, आसन, शायन, स्तम्भ, भांड, मिट्टी, कांसे आदि से बने भाजन गृहोपयोगी बर्तन, उपकरण आदि वस्तुओं एवं योजन आदि का माप किया जाता है। आत्मांगुल सामान्य से तीन प्रकार का है-सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, एक अंगुल लम्बी और एक प्रदेश चौडी आकाश-प्रदेशों की श्रेणि-पंक्ति का नाम सूच्यंगुल है । सूच्यंगुल को सूच्यंगुल से गुणा करने पर प्रतरांगुल बनता है । प्रतरांगुल को सूच्यंगुल से गुणित करने पर घनांगुल होता है । भगवन् ! इन सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में से कौन किससे अल्प, कौन किससे अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? इनमें सूच्यंगुल सबसे अल्प है, उससे प्रतरांगुल असंख्यातगुणा है, उसे घनांगुल असंख्यातगुणा है । उत्सेधांगुल क्या है ? अनेक प्रकार का है। सूत्र-२६४ परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका और यव, ये सभी क्रमशः उत्तरोत्तर आठ गुणे जानना । सूत्र-२६५-२६६ भगवन् ! परमाणु क्या है ? दो प्रकार का सूक्ष्म परमाणु और व्यवहार परमाणु । इनमें से सूक्ष्म परमाणु स्थापनीय है। अनन्तानंत सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय एक व्यावहारिक परमाणु निष्पन्न होता है। व्यावहारिक परमाणु तलवार की धार या छुरे की धार को अवगाहित कर सकता है ? हाँ, कर सकता है । तो क्या वह उस से छिन्न-भिन्न हो सकता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं । शस्त्र इसका छेदन-भेदन नहीं कर सकता। क्या वह व्यावहारिक परमाणु अग्निकाय के मध्य भाग से होकर निकल जाता है ? हाँ, निकल जाता है । तब क्या वह उससे जल जाता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्या व्यावहारिक परमाणु पुष्करसंवर्तक नामक महामेघ के मध्य में से होकर निकल सकता है ? हाँ, निकल सकता है। तो क्या वह वहाँ पानी से गीला हो जाता है ? नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं है। क्या वह व्यावहारिक परमाणु गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्रता से गति कर सकता है ? हाँ, कर सकता मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 38

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