Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 44
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' की एक शीर्षप्रहेलिका होती है । एतावन्मात्र ही गणित है । इतना ही गणित का विषय है, इसके आगे उपमा काल की प्रवृत्ति होती है। सूत्र- २८० औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? वह दो प्रकार का है । पल्योपम और सागरोपम | पल्योपम के तीन प्रकार हैं-उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम | उद्धारपल्योपम दो प्रकार से है, सूक्ष्म और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम । इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है। व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का स्वरूप -उत्सेधांगुल से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन ऊंचा एवं कुछ अधिक तिगुनी परिधिवाला एक पल्य हो । उस पल्य को एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् अधिक से अधिक सात दिन के उगे हुए बालागों से इस प्रकार ठसाठस भरा जाए कि फिर उन बालारों की अग्नि जला न सके, वायु उड़ा न सके, न वे सड़-गल सकें, न उनका विध्वंस हो, न उनमें दुर्गन्ध उत्पन्न हो । तत्पश्चात् एक-एक समय में एक-एक बालाग्र का अपहरण किया जाए-तो जितने काल में वह पल्य क्षीण, नीरज, निर्लेप और निष्ठित हो जाए, उतने काल को व्यावहारिक उद्धारपल्योपम कहते हैं। सूत्र- २८१ ऐसे दस कोडाकोडी पल्योपमों का एक व्यावहारिक उद्धार सागरोपम होता है। सूत्र-२८२ व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है। ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिए हैं। सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है-धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधिवाला पल्य हो । इस पल्य को एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्ट सात दिन तक के उगे हुए बालाग्रों से खूब ठसाठस भरा जाए और उन एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात-असंख्यात खंड किये जाए जो निर्मल चक्षु से देखने योग्य पदार्थ की अपेक्षा भी असंख्यातवें भाग प्रमाण हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यातगुणें हों, जिन्हें अग्नि जला न सके, वायु उड़ा न सके, जो सड़-गल न सके, नष्ट न हो सके और न दुर्गंधित हो सके । फिर समय-समय में उन बालाग्रखंडों को निकालते-निकालते जितने काल में वह पल्य बालारों की रज से रहित, बालानों के संश्लेष से रहित और पूरी तरह खाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहते हैं। सूत्र-२८३ इस पल्योपम की दस गुणित कोटाकोटि का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम का परिमाण होता है । (अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम होता है।) सूत्र- २८४ सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और सूक्ष्म उद्धारसागरोपम से किस प्रयोजन को सिद्धि होती है ? इससे द्वीप-समुद्रों का प्रमाण जाना जाता है । अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं । अद्धापल्योपम के दो भेद हैं-सूक्ष्म अद्धापल्योपम और व्यावहारिक अद्धापल्योपम । उनमें से सूक्ष्म अद्धापल्योपम अभी स्थापनीय है । व्यावहारिक का वर्णन निम्न प्रकार है-धान्य के पल्य के समान एक योजन प्रमाण दीर्घ, एक योजन प्रमाण विस्तार और एक योजन प्रमाण ऊर्ध्वता से युक्त तथा साधिक तीन योजन की परिधि वाला कोई पल्य हो । उस पल्य को एक, दो, तीन दिवस यावत् सात दिवस के उगे हुए बालानों से इस प्रकार से पूरित कर दिया जाए कि वे बालाग्र अग्नि से जल न सकें, वायु उन्हें उड़ा न सके, वे सड़-गल न सके, उनका विध्वंस भी न हो सके और उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके । तदनन्तर उस पल्य में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक बालाग्र निकालने पर जितने काल में वह पल्य उन बालानों से रहित, रजरहित और निर्लेप एवं निष्ठित-पूर्ण रूप से खाली मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 44

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