Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 37
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' मानी होती है । इस रसमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से वारक, घट, करक, किक्किरी, दृति, करोडिका, चौड़ा होता है, कुंडिका आदि में भरे हुए रसों के परिमाण का ज्ञान होता है। उन्मानप्रमाण क्या है ? जिसका उत्मान किया जाए अथवा जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है, उन्हें उन्मानप्रमाण कहते हैं । उसका प्रमाण निम्न प्रकार है-अर्धकर्ष, कर्ष, अर्धपल, पल, अर्धतुला, तुला, अर्धभार और भार । इन प्रमाणों की निष्पत्ति इस प्रकार होती है-दो अर्धकर्षों का एक कर्ष, दो कर्षों का एक अर्धपल, दो अर्धपलों का एक पल, एक सौ पाँच अथवा पाँच सौ पलों की एक तुला, दस तुला का एक अर्धभार और बीस तुला-दो अर्धभारों का एक भार होता है । उन्मानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से पत्र, अगर, तगर, चोयक, कुंकुम, खांड, गुड़, मिश्री आदि द्रव्यों के परिमाण का परिज्ञान होता है। अवमान (प्रमाण) क्या है ? जिसके द्वारा अवमान किया जाये अथवा जिसका अवमान किया जाये, उसे अवमानप्रमाण कहते हैं । वह इस प्रकार-हाथ से, दंड से, धनुष से, युग से, नालिका से, अक्ष से अथवा मूसल से नापा जाता है। सूत्र-२५४ दंड, धनुष युग, नालिका, अक्ष और मूसल चार हाथ प्रमाण होते हैं । दस नालिका की एक रज्जू होती है। ये सभी अवमान कहलाते हैं। सूत्र - २५५ वास्तु को हाथ द्वारा, क्षेत्र दंड द्वारा, मार्ग को धनुष द्वारा और खाई को नालिका द्वारा नापा जाता है। इन सबको अवमान' इस नाम से जानना । सूत्र-२५६ अवमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से खात, कुआ आदि, ईंट, पत्थर आदि से निर्मित प्रासाद, पीठ, क्रकचित, आदि, कट, पट, भीत, परिक्षेप, अथवा नगर की परिखा आदि में संश्रित द्रव्यों की लंबाई-चौड़ाई, गहराई और ऊंचाई के प्रमाण का परिज्ञान होता है। गणिमप्रमाण क्या है ? जो गिना जाए अथवा जिसके द्वारा गणना की जाए, उसे गणिमप्रमाण कहते हैं । - एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़ इत्यादि । गणिमप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से भृत्य, कर्मचारी आदि की वृत्ति, भोजन, वेतन के आय-व्यय से सम्बन्धित द्रव्यों के प्रमाण की निष्पत्ति होती है। प्रतिमान (प्रमाण) क्या है ? जिसके द्वारा अथवा जिसका प्रतिमान किया जाता है, उसे प्रतिमान कहते हैं। गुंजा, काकणी, निष्पाव, कर्ममाषक, मंडलक, सुवर्ण । पाँच गुंजाओं का, काकणी की अपेक्षा चार काकणियों का अथवा तीन निष्पाव का एक कर्ममाषक होता है । इस प्रकार कर्ममाषक चार प्रकार से निष्पन्न होता है । बारह कर्ममाषकों का एक मंडलक होता है । इसी प्रकार अड़तालीस काकणियों के बराबर एक मंडलक होता है । सोलह कर्ममाषक अथवा चौसठ काकणियों का एक स्वर्ण (मोहर) होता है। प्रतिमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से सुवर्ण, रजत, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि द्रव्यों का परिमाण जाना जाता है । इसे ही प्रतिमानप्रमाण कहते हैं। सूत्र - २५७ क्षेत्रप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है। प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । प्रदेशनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ? एक प्रदेशावगाढ, दो प्रदेशावगाढ यावत् संख्यात प्रदेशावगाढ, असंख्यात प्रदेशावगाढ क्षेत्ररूप प्रमाण को प्रदेशनिष्पन्न क्षेत्रप्रमाण कहते हैं । विभागनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण क्या है ? सूत्र- २५८ अंगुल, वितस्ति, रत्नि, कुक्षि, धनुष गाऊ, योजन, श्रेणि, प्रतर, लोक और अलोक को विभागनिष्पन्नक्षेत्रप्रमाण जानना । मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 37

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