Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 18
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' सूत्र-११४ नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी क्या है ? इस के पाँच प्रकार हैं । -अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम । नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? तीन आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् दस प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है यावत् संख्यात आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वी है । आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ द्रव्य से लेकर यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक क्षेत्रापेक्षया अनानुपूर्वी है । दो आकाशप्रदेशों में अवगाढ द्रव्य क्षेत्रापेक्षया अवक्तव्यक है । तीन आकाशप्रदेशावगाही अनेक-बहुत द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियाँ हैं यावत् दसप्रदेशावगाही द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियाँ हैं यावत् संख्यात-प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियाँ हैं, असंख्यात प्रदेशावगाढ द्रव्यस्कन्ध आनुपूर्वियाँ है । एक प्रदेशावगाही पुद्गलपरमाणु आदि द्रव्य अनानुपूर्वियाँ हैं । दो आकाशप्रदेशावगाही व्यणुकादि द्रव्यस्कन्ध अवक्तव्यक है। इस नैगम-व्यवहारनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है ? ईनके द्वारा नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमु-त्कीर्तनता की जाती है । नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? वह इस प्रकार हैआनुपूर्वी, अनानुपूर्वी, अवक्तव्यक है इत्यादि द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह क्षेत्रानुपूर्वी के भी वही छब्बीस भंग हैं। नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगसमुत्की-तनता का क्या प्रयोजन है ? इस के द्वारा नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता की जाती है। नैगम-व्यवहारनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? तीन आकाशप्रदेशावगाढ त्र्यणुकादि स्कन्ध आनुपूर्वी पद का वाच्य हैं हैं । एक आकाशप्रदेशावगाही परमाणुसंघात अनानुपूर्वी तथा दो आकाशप्रदेशावगाही व्यणुकादि स्कन्ध क्षेत्रापेक्षा अवक्तव्यक है । तीन आकाशप्रदेशावगाही अनेक स्कन्ध 'आनुपूर्वियाँ' इस बहुवचनान्त पद के वाच्य हैं, एक एक आकाशप्रदेशावगाही अनेक परमाणुसंघात ‘अनानुपूर्वियाँ' पद के तथा द्वि आकाशप्रदेशावगाही व्यणुक आदि अनेक द्रव्यस्कन्ध 'अवक्तव्यक' पद के वाच्य हैं । अथवा त्रिप्रदेशावगाढस्कन्ध और एक प्रदेशावगाढस्कन्ध एक आनुपूर्वी और एक अनानुपूर्वी है । इस प्रकार द्रव्यानुपूर्वी के पाठ की तरह छब्बीस भंग यहाँ भी जानना । समवतार क्या है ? नैगम-व्यवहारनयसंमत आनुपूर्वी द्रव्यों का समावेश कहाँ होता है ? क्या आनुपूर्वी द्रव्यों में, अनानुपूर्वी द्रव्यो में अथवा अवक्तव्यक द्रव्यों में समावेश होता है ? आनुपूर्वी द्रव्य आनुपूर्वी द्रव्यों में ही समाविष्ट होते हैं । इस प्रकार तीनों स्व-स्व स्थान में ही समाविष्ट होते हैं। अनुगम क्या है ? नौ प्रकार का है। यथासूत्र-११५ सत्पदप्ररूपणता, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अंतर, भाग, भाव और अल्पबहुत्व । सूत्र-११६ सत्पदप्ररूपणता क्या है ? नैगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वीद्रव्य है या नहीं? नियमतः हैं। इसी प्रकार अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी समझना । नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वी द्रव्य क्या संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? वह नियमतः असंख्यात हैं । इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिए भी समझना । नैगम-व्यवहारनयसंमत क्षेत्रानुपूर्वी द्रव्य लोक के कितने भाग में रहते हैं ? क्या संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें भागमें यावत् सर्वलोक में रहते हैं ? एक द्रव्य की अपेक्षा लोक के संख्यातवें भाग में, असंख्यातवें भाग में, संख्यातभागों में, असंख्यातभागों में अथवा देशोन लोक में रहते हैं, किन्तु विविध द्रव्यों की अपेक्षा नियमतः सर्वलोकव्यापी हैं । नैगम-व्यवहार-नयसंमत अनानुपूर्वी द्रव्य के विषय में भी यह प्रश्न है । एक द्रव्य की अपेक्षा संख्यातवें भाग में, संख्यात भागों में, असंख्यात भागों में अथवा सर्वलोक में अवगाढ नहीं है किन्तु असंख्यातवें भाग में है तथा अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वलोक में व्याप्त हैं । अवक्तव्यक द्रव्यों के लिए भी इसी प्रकार जानना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 18

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