Book Title: Agam 45 Anuyogdwar Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 16
________________ आगम सूत्र ४५, चूलिकासूत्र-२, 'अनुयोगद्वार' प्रदेश की अपेक्षा नैगम-व्यवहारनयसंमत अनानुपूर्वीद्रव्य अप्रदेशी होने से सर्वस्तोक हैं, प्रदेशों की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य अनानुपूर्वी द्रव्यों से विशेषाधिक और आनुपूर्वीद्रव्य अवक्तव्य द्रव्यों में अनन्तगुणे हैं । द्रव्य और प्रदेश से अल्पबहुत्व नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यद्रव्य-द्रव्य की अपेक्षा सबसे अल्प हैं | द्रव्य और अप्रदेशार्थता की अपेक्षा अनानुपूर्वीद्रव्य विशेषाधिक हैं, प्रदेश की अपेक्षा अवक्तव्यद्रव्य विशेषाधिक है, आनुपूर्वीद्रव्य द्रव्य की अपेक्षा असंख्यातगुण और वही प्रदेश की अपेक्षा अनन्तगुण हैं। सूत्र - १०१ संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? वह पाँच प्रकार की है | -अर्थपदप्ररूपणता, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार, अनुगम । सूत्र - १०२ संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ? वह ईस प्रकार है-त्रिप्रदेशिक स्कन्ध, चतुष्प्रदेशी स्कन्ध, यावत् दस-प्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है । परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी हैं और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक है। सूत्र - १०३ संग्रहनयसम्मत इस अर्थपदप्ररूपणता का क्या प्रयोजन है ? ईसके द्वारा संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता की जाती है। संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता क्या है ? उसका स्वरूप इस प्रकार है-आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्यक है । अथवा आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वी और अवक्तव्यक है, अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक है। अथवा आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी-अवक्तव्यक है । इस प्रकार ये सात भंग होते हैं । इस संग्रहनयसम्मत भंगसमुत्कीर्तनता का क्या प्रयोजन है ? इस के द्वारा भंगोपदर्शन किया जाता है। सूत्र - १०४ संग्रहनयसम्मत भंगोपदर्शनता क्या है ? उसका स्वरूप इस प्रकार है-त्रिप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में, परमाणुपुद्गल अनानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में और द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं। __ अथवा-त्रिप्रदेशिक स्कन्ध और परमाणुपुद्गल, आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी शब्द के वाच्यार्थ रूप में, त्रिप्रदेशिक और द्विप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी-अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में तथा परमाणुपुद्गल और द्विप्रदेशिक स्कन्ध, अनानुपूर्वी-अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं । अथवा-त्रिप्रदेशिक स्कन्ध-परमाणुपुद् गल-द्विप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी-अवक्तव्यक शब्द के वाच्यार्थ रूप में विवक्षित होते हैं। सूत्र-१०५ भगवन् ! समवतार क्या है ? क्या संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य आनुपूर्वीद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? अथवा अनानु-पूर्वीद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? या अवक्तव्यकद्रव्यों में समाविष्ट होते हैं ? संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य, आनुपूर्वीद्रव्यों में ही समवतरित होते हैं । इसी प्रकार अनानुपूर्वीद्रव्य और अवक्तव्यकद्रव्य भीस्वस्थान में ही समवतरित होते हैं। सूत्र - १०६-१०७ संग्रहनयसम्मत अनुगम क्या है ? वह आठ प्रकार का है । सत्पदप्ररूपणा, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अन्तर, भाग और भाव । इसमें अल्पबहुत्व नहीं होता है। सूत्र-१०८ संग्रहनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य हैं अथवा नहीं हैं ? नियमतः हैं। इसी प्रकार दोनों द्रव्यों के लिये भी समझना। संग्रह-नयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं ? वह नियमतः एक राशि रूप हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (अनुयोगद्वार) आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद' Page 16

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