Book Title: Agam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra Ek Parishilan
Author(s): Sudarshanlal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 15
________________ लेखकीय उत्तराध्ययनसूत्र श्वेताम्बर जैन आगम का एक महत्त्वपूर्ण मूल ग्रन्थ है। इस पर जब मैंने शोधकार्य प्रारम्भ किया था तब मुझे आशा नहीं थी कि इसका अन्य भाषा में अनुवाद होगा। सन् १९६७ में पी-एच०डी० उपाधि प्राप्त करने के बाद मेरी नियुक्ति वर्धमान कालेज बिजनौर में प्राध्यापक के पद पर हो गई। वहाँ एक वर्ष तक कार्य करने के बाद मेरी नियुक्ति सन् १९६८ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हो गई। यहाँ आने के बाद सन् १९७० में यह शोधप्रबन्ध सोहन लाल जैन धर्म प्रचारक समिति अमृतसर द्वारा संचालित पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी से प्रकाशित हुआ। प्रकाशन के बाद उत्तर प्रदेश शासन द्वारा यह शोधप्रबन्ध पुरस्कृत किया गया। कुछ समय के बाद प्रो० अरुण शान्तिलाल जोशी, व्याख्याता, शामणदास कालेज, भावनगर का एक पत्र मुझे मिला जिसमें उन्होंने हिन्दी भाषा में लिखित इस शोधप्रबन्ध की उपयोगिता देखकर इसका गुजराती भाषा में अनुवाद करने की अनुमति मांगी जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह मेरे लिए भी गौरव की बात थी कि मेरी प्रथम रचना का इतना महत्त्व आंका जा रहा है। दिसम्बर १९८२ में इसका गुजराती अनुवाद हो गया था और पार्श्वनाथ विद्यापीठ के तत्कालीन निदेशक डॉ० सागरमल जी ने इस महत्त्वपूर्ण अनुवाद को देखकर पार्श्वनाथ विद्यापीठ से ही प्रकाशित करने की स्वीकृति भी प्रदान कर दी थी परन्तु वाराणसी में गुजराती भाषा के अच्छे टंकण का अभाव होने से उन्नीस वर्ष की लम्बी प्रतीक्षा के बाद अब इसका प्रकाशन हो रहा है। इसके प्रकाशन में श्री रमण भाई शाह तथा उनके मित्र श्री विपिन भाई जैन का सहयोग सराहनीय है। इतने वर्षों के बाद भी इसका प्रकाशन इसकी उपयोगिता को सिद्ध करता है। इसके लिए मैं अग्रज श्री जोशी जी के प्रति भी आभार प्रकट करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ जिन्होंने इतना सुन्दर गुजराती अनुवाद करके गुजराती भाईयों के लिए इसके अध्ययन का मार्ग प्रशस्त किया है। कालान्तर में मैंने विविध विषयों पर अन्य ग्रन्थ और लेख भी लिखे हैं जो पुरस्कृत भी हुए हैं और समादर को भी प्राप्त हुए हैं। ग्रन्थों में प्राकृत-दीपिका, संस्कृत-प्रवेशिका, तर्कसंग्रह (हिन्दी व्याख्या), मुनिसुव्रतकाव्य (हिन्दी अनुवाद), कर्पूरमंजरी (हिन्दी-संस्कृत व्याख्या), देव शास्त्र गुरु आदि। वर्तमान में आचार्य हरिभद्रसूरि के न्यायग्रन्थ 'अनेकान्त जयपताका' का हिन्दी अनुवाद कर रहा हूँ। आशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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