Book Title: Agam 41A Pindnujjutt Mulsutt 02A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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ओहनित्ति (१४०)
(१४०) पहुच्छिखीर सतरं घयाइ तक्कस्स गिण्हणे दीहं गेहि विचिणियभया निसट्ट सुवणे य परिहाणी (१४१ ) गाये परितलि अगमाइमग्गणे संखडी छणे विरूवा सणी दाणे भद्दे जेमण विगई गहण दीहं (१४२ ) अह जग्गइ गेलनं अस्संजयकरणं जीववाघाओ इच्छमणिच्छे मरणं गुरु आणा छड्डेण काया (१४३) तक्कोयणाण गहणे गिलाण आणा बाला इया जढा होति अप्पतं व पडिच्छे सोचा अहवा सयं नाउं
(१४४) दूरुट्ठिअ खुड्डलए नव भड अगणी अ पंत पंडिणीए अप्पत्तपडिच्छण पुच्छ बाहिं अंतो पविसिअव्वं ( १४५) कक्खडखेत्तचुओ या दुब्बल अद्धाण पविसमाणो वा खीराइगहण दीहं बहु च उवमा अयकडिल्ले (१४६ ) जे चेव पडिच्णदीहखद्धसुवणेसु वण्णिआ दोसा ते चैव सपडिवक्खा होति इहं कारणजाए (१४७) विहिपुच्छाए सण्णी सोउं पविसे न बाहि संचिक्खे उग्गमदोस भएणं चोयगवयणं बहि ठाउं
( १४८) सोचा दवणं वा बाहितिअं उग्गमेगयर कुज्जा अम्पत्त पविट्टो पुण चोयग दुहुं निवारेज्जा ( १४९) उग्गमदोसाईणं कहणा उप्पायनेसणाणं च तत्य उ नत्थी सुत्रे बाहिं सागार कालदुबे
( १५० ) फेडेज व सइकालं संखडि घेतूण वा पए गच्छे सुणधराइपलोयण चेइय आलोयणाऽ बाहं (१५१) उग्गमएसणकहणं न किंचि करणिज अम्ह विहिदाणं कस्सऽट्ठा आरंभी तुज्झेसो पाहुणा डिंभा
( १५२) रसवइपवितण पासण भिअमभिअमुक्खडे तड़ा गहणं पत्ते तत्वेव उ उभएगरे य ओयविए (१५३) असइ अपचते वा सुण्गधराईण बाहिं संसट्टे लट्ठी दारघट्टण पविसण उस्सग्ग आसत्ये (१५४) आलोअणमालावो अद्दिमिवि तहेव आलावो किं उशवं न देसी अदिद्धं निस्संकिअं भुंजे (१५५) दिट्ट असंघम पिंडो तुज्झविय इमोत्ति साह वेउव्वी सोवि अगारी दोघा नीइ पिसाउत्तिकाऊणं (१५६) निव्वेण व मालेण व वाउपवेसेण अहव सढयाए गमणं च कहण आगम दूरमासे विही इणमो (१५७) थोचं भुंजइ बहुअं विगिंचई पउमपत्तपरिगुणणं पतेसु कहिं भिक्खं दिट्ठमदिट्टे विभासा उ
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||८||-87
116311-88
||3a||-89
113911-90
॥९२॥-91
1/83/4-92
118814-93
॥५०॥ पा.-50
11491197.-51
118411-94
1.५२॥ पा. -52
॥१५३॥ पा.-53
॥ ५४ ॥ पा.-54
॥५५॥ भा. 55
॥५६॥ पा.-56
॥५७॥ था. 57
114,2|| T.-58
॥५९॥ पा. -59

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